प्‍यासा अंजुम की ग़ज़ल

काम  कहता  है  निराला कर दिया।
बंद मुफ़्लिस का निवाला कर दिया।।



वो  फिरे   क़ानून   लेकर   हाथ  में।
मुल्क़ का जिसने दिवाला कर दिया।।



यह  अँधेरों  भी   उसे   खा   जाएंगे।
क़ैद  जिसने   है   उजाला कर दिया।।



अब हक़ीक़त  लिख कहाँ वो पाएगा।
कोरा क़ागज़ जिसने काला कर दिया।।



महल   आलीशां    बनाने   के   लिए।
ढेर  मसजिद और शिवाला कर दिया।।



रंग   भरकर   चटपटा   अख़बार   में।
हर  ख़बर  को ही  मसाला कर दिया।।



चूमता  "अंजुम"  वही  है   अर्श  को।
जिसने भी खुलकर उजाला कर दिया।।
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        मेरे क़लम से प्यासा अंजुम



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