राष्ट्र के लिए उपयुक्त भाषा हिंदी-शिवानी

 "है भव्य भारत ही हमारी
 मातृभूमि हरी-भरी।
 हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा 
 और लिपि है नागरी।"


प्रत्येक मनुष्य अपने भावों की अभिव्यक्ति किसी न किसी भाषा के माध्यमसे करता है ।साहित्य , विज्ञान , कला , दर्शन आदि सभी का आधार भाषा ही है ।किसी भी देश के निवासियों में राष्ट्रीय एकता की भावना के विकास और पास्परिक सम्पर्क के लिए एक ऐसी भाषा होनी चाहिए जिसका व्यवहार राष्ट्रीय स्तर पर किया जा सके ।डॉ .जाकिर हुसैन ने कहा था - ' *हिन्दी की प्रगति से देश की सभी भाषाओं की प्रगति होगी* |'
            राष्ट्रभाषा से तात्पर्य है - *किसी राष्ट्र की जनता की भाषा* ।मनुष्य के मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए राष्ट्रभाषा अत्यन्त आवश्यक है ।मनुष्य चाहे जितनी भी भाषाओं का  ज्ञान प्राप्त कर ले , परन्तु अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए उसे अपनी भाषा की शरण लेनी पड़ती है ।इससे उसे मानसिक सन्तोष का अनुभव होता है ।राजर्षि टण्डन ने कहा था - " *हिन्दी राष्ट्रीयता के मूल को सींचती है और उसे दृढ़ करती है ।* " 
     संविधान का निर्माण करते समय यह प्रश्न आया कि किस भाषा को राष्ट्रभाषा बनाया जाय?तब हिन्दी के महत्व को ध्यान में रखकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया गया ।महात्मा गाँधी ने कहा *- " राष्ट्रभाषा की जगह एक हिन्दी ले सकती है , कोई दूसरी भाषा नहीं ।'*
                             हिन्दी भाषा संसार की सबसे अधिक सरल , सरस,मधुर एवं वैज्ञानिक भाषा है , फिर भी हिन्दी के कुछ विरोधी है जो इसे राष्ट्रभाषा नहीं मानते।राष्ट्रभाषा हिन्दी की प्रगति के लिए केवल सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं वरन् इसके लिए जन-जन का सहयोग आवश्यक है ।केन्द्रीय सरकार ने हिन्दी - निदेशालय की स्थापना करके हिन्दी के विकास कार्य को गति प्रदान की है।'नागरी प्रचारिणी सभा ', ' हिन्दी -साहित्य सम्मेलन आदि संस्थानों ने हिन्दी के विकास तथा प्रसार-प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है|हिन्दी भाषा भारत के विस्तृत क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है ,जिसे देश के करोड़ों लोग बोलते हैं ।यह सरल तथा सुबोध है और इसकी लिपि इतनी बोधगम्य है कि थोड़े अभ्यास से समझ मे आ जाती है ।राष्ट्रभाषा के लिए हिन्दी सबसे उपयुक्त भाषा है ।हमारी राष्ट्रभाष की उन्नति ही हमारी उन्नति है ।भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कहा था -


 " निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को को मूल|
 बिन निजभाषा ज्ञान के,मिटत न हिय को सूल ।।" 
                   
हमारा कर्तव्य है कि हम हिन्दी के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाएं ।राष्ट्रभाषा हिन्दी के अन्तर्गत विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं की सरल शब्दावली को अपनाया जाना चाहिए ।राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का भविष्य उज्वल है ।हिन्दी भाषा राष्ट्रीय जीवन का आदर्श है ।राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता के सदर्भ में कहा था - " *मैं हमेशा यह मानता रहा हूँ कि हम किसी भी हालत में प्रान्तीय भाषाओं को नुकसान पहुंचाना नहीं चाहते । हमारा मतलब तो सिर्फयह है कि विभिन्नप्रान्तों के पारस्परिक संबंध के लिए हम हिन्दी - भाषा सीखें ।"*
             हमारे देश में हिन्दी एवं अहिन्दी भाषी अनेक विद्वानों ने राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का समर्थन किया है और हिन्दी को गौरवपूर्ण स्थान प्रदान करते हुए राष्ट्रभाषा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना है ।
                        
           *शिवानी त्रिपाठी* 
             *प्रयागराज ,(उत्तर प्रदेश)*



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