रजनी-‍अमिता मराठे

एक दिन आपका  में अमिता मराठे की लघु कथा 



स्कूल से लौटते ही रजनी अपने कमरे में चली गई थी।किन्तु उसका अशंकित मन उसे भयभीत कर रहा था।बैठक मे ताऊजी बड़े भैय्या सभी किसी गहन वार्तालाप मे व्यस्त थे। रजनी का विवाह होकर  तीन माह हुए थे तो उसके पति का देहावसान हो गया था।वह मायके चली आई थी।स्कूल मे जाॅब मिलने से कुछ बहल गई थी।उसकी उम्र से बीस साल बड़े लडके के साथ विवाह होने के बाद उसे पता चला वे गंभीर बीमारी से पीड़ित है ।उसने अपनी तकदीर को कोसा न घर वालो को बस अपना कर्मभोग समझकर प्रेम पूर्वक पति की सेवा में जुट गई थी।भाग्य मेंं जो लिखा होगा उसे भगवान भी मिटा नहीं सकता इस सोच पर उसे पूरा विश्वास था ।    इलाज और सेवा मेंं उसने कोई कमी नहीं रखी थी ।वह हर कार्य तत्परता से कर रही थी।पति भी अफसोस जताते थक गये थे।अंत मेंं डाॅक्टर ने भी जवाब दे ही दिया ।
सब कुछ सहन कर रजनी मौन थी ।अब आत्मनिर्भर बनने की भी ठान ली थी।पढी लिखी रजनी को केवल मार्ग ढूंढना था जो उसे मिल भी गया था।फिर घर मेंं ये कैसी हलचल सोच कर वह दुःखी मन से  मम्मी के पास गयी और पूछा मम्मी घर मेंं ये क्या चल रहा है ।मां ने बड़े प्यार से रजनी के सिर पर हाथ रखकर कहा ,बेटा अभी तेरे लिए एक रिश्ता आया है उस पर सब सोच रहे है ।तू भला ऐसे कैसी रह सकती है।हम भी तुम्हें ऐसा नहीं देख सकते है ।दोबारा क्यों न हो हाथ तो पीले करने ही होंगे । रजनी के आंसू सुख चुके थे।उसने गंभीरता से कहा मेरा विवाह हो गया है ।अब किसी के साथ नहीं हो सकताहै।
   मां ने कहा अरे बेटी कैसी बातें कर रही हो।रजनी मां का हाथ पकड़कर बैठक में चली आई थी।उसने स्पष्ट शब्दो में कहा आपने मेरा विवाह एक शरीर से रचा दिया था।वह शरीर समाप्त हो गया है।अब दूसरी शादी मैं नही चाहती क्योंकि मुझ आत्मा ने परमात्मा को अपना जीवनसाथी बना लिया है।वह पूरी निगरानी मुझ पर रखेगा आप चिन्ता नहीं करो।मुझे सुख से जीने दो कहते हाथ जोडकर दृढता से रजनी सबको देखने लगी।अब सभी की निगाहे रजनी की दृढ स्थिर मुद्रा पर टिकी थी।जिसको कोई जवाब नही चाहिए था ना ही सलाहे चाहिए थी।उसके दृढ निश्चय के सामने सबकी वाणी स्तब्ध हो गई थी ।



अमिता मराठे 
इन्दौर 



 


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