सपने
मैंने भी
देखें थे
कई सपने
टूटते
तारों की तरह
वह भी टूटे
सपनों का क्या
टूटने के लिए
होता है
या फिर
संभलने के लिए
बचपन से
देखती आ रही हूँ
आकाश में
तारों को टूटते हुए
सपनों को रौंदते हुए
फिर भी मैं
मुस्कुराती हूँ
चाँदनी की तरह...
ऋता सिंह" सर्जना"
तेजपुर, असम
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