साहित्य मन हृदय की वो दर्पण , जिसमें समाज और देश विश्वास के साथ अपनी संस्कृति और अपनी अंर्तमन भावनाओं का विशलेषण करता है। हृदय के आँगन मे एक मलह़म बन शब्दों से घावों को भरता है 'साहित्यिक कृतियों से साहित्य की धरातल पर सुकून के फुल खिलते है। वो पथ साहित्य ही है जहां राहीं अपनी मंजिल चुनता है। साहित्य विद्यालय है जहा साहित्यिक भाषा के स्वर गुजतें है और मन भावविभोर हो उठता है ,संस्कृति समयरेखा की बदलाव परिवेशों मे प्रेम रुपी बीजों को अंकुरित करता है एक प्रकाश स्तंभ उजागर कर ,ईष्र्या दैव्ष ,अंहकार को खत्म करता है ,साहित्य मानवीय संवेदना व्यक्त करते हूये पशुओं और मानव की मन मस्तिष्क भावनात्मक जुड़ाव को समझने मे प्रयासरत रहता है अनुशासन के दामन को थामे रखने मे साहित्य अपनी भूमिका निभाता है।
यह वटवृक्ष की भातिं आँगन मे आशीर्वाद की बौछार करता है ,और जीवनशैली को जीवंत रखने मे सहयोग देता ,साहित्य सागर की गहराई मे अपने कृतज्ञता की मोती शंख को अर्पित करता और ,हरदम खुशियों की शाखाओं पर अपने नाम की दीपक जलाकर हम मानवीय मूल्यों की पहचान कराता।
हौसलों की उडा़न को साहित्य स्थापित करता है ।यूं कहूँ पत्थरों मे भी त्वचा की अनभूति साहित्य है,बैरंग जीवनशैली की मुहब्बत साहित्य है धर्म,संस्कृति, सभ्यता की नीवें है इनमें
हवाओं मे जो शब्दों की खुशबू हो,साहित्य है
अंकिता सिन्हा
जमशेदपुर झारखंड
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