संस्‍मरण -अमिता मराठे

एक दिन आपको में अमिता मराठे का संस्मरण 


पर्वो के नाम से आज हम भले ही मनोरंजन कर ले किन्तु यह ध्यान मे रखा जाये कि एक दो घंटे में किया गया मनोरंजन कही चिरकाल के लिए किसी बुरी आदत का गुलाम बन जाये।
मन के रंजन के साथ उस पर काला अंजन न पोता जाये।वह मनोरंजन आत्म भंजन अथवा आत्मवंचन रूप न ले ले ।कुछ ऐसे ही सोच मे बैठी थी इतने मे मुझे कॉलोनी की बहनो माताओ की पुकार सुनाई दी।मैने गैलेरी से झांक कर देखा सभी रंग बिरंगी हो गई थी।उनके बीच जाना तो चाहिए यूं विचार कर मैं नीचे आ गई ।
सभी उमंग-उत्साह से पास मे आने लगी तभी मैंने प्रेम से अभिवादन किया और कहा केवल गुलाल ही लगाना वो भी भाल पर एक बार ही।किसी ने कहा हम तो पूरा रंग देंगे ।किन्तु मेरी ददृढता को देख कर सभी बहने सतर्क हो गई ।आप बुरा न माने आज की होली तो आपके साथ खुलकर खेलना चाहते है।जरूर किन्तु उतनी ही ता कि मैं बीमार न हो जाऊं।
सही कहा आपने कहते हुए बारी बरी से सभी ने बडी शालीनता से एक दूसरे को रंग लगाया।कुछ समय पूर्व ही मखौल मस्ती व भद्दे मजाक करती माताओ में इतना बदलाव देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गई ।
         हम सब ने आँगन में ही चाय पी ।गुझिया खिलाकर सबका मुख मीठा किया।मन की बुराई मिटा कर सभी गले मिलकर छल कपट बुरे भावो से मुक्त होने का संकल्प लेते हुए बिदा हुई।क्योंकि रात्रि मे मंडल की ओर से परिवार संग सहभोज का आयोजन था।सजधज कर बाल युवा के बीच भी विशेष खुशी का नजारा दिखाई दे रहा था।
        वरिष्ठ बहनो व भाईयो ने होली के आध्यात्मिक पक्ष पर अपने विचार रखे।मैने भी सभी की तारीफ करते हुए प्रेम से होली मनाने की बधाई दी और पूर्व मे लिये गये संकल्प को ईमानदारी से निभाने का आग्रह किया ।
अब मैने देखा सभी भोजन कर थके हुए घर लौट रहे थे।मेरी याद मे पहली बार इतनी सौम्यता व शालीनता से होली मनाई गई थी।शायद उस पर कोरोना वायरस का असर कहो या डर तो नहीं होगा सोचते ही मैं मन ही मन मुस्कराते हुए भगवान को धन्यवाद कहते सो गई।


अमिता मराठे 
इन्दौर मप्र 
स्व रचित



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ