संतोष शान का वक्त

लम्बी कहानी  


आर्यन काफी दिनों से परेशान दिखाई दे रहा था , मुझे समझ नहीं आया की जो इंसान पिछले आठ साल से खुद को मेरा दोस्त बताता है, हर छोटी-बड़ी बात मुझसे शेयर करता आया है वही परेशान है फिर भी ....... ।
हे‌  आर्य  !  हाय ….  कैसा है ?
मैं ठीक हूं तू बता।
यार हमारी दोस्ती में दूरियां कब से बढ़ने लगी ? 
 अमित ! मैं और तुमसे दूर ..?
और नहीं तो क्या देख रहा हूं तुझे काफी दिनों से चुप चुप रहता है ना साथ कॉफी पीने चलता है ना समय बिताता है।


नहीं नहीं अमित ऐसी बात नहीं है
तो कैसी बात है।
यार मैं क्या कहूं तुमसे !? 
जो बात है वो कह !
तू नहीं ,समझेगा यार ।
अच्छा ! आज तक मैं सब कुछ समझता था !! अब अचानक ही .......अबे शादी शुदा है हम-दोनों  ... लड़कियों का चक्कर होता तो भी कुछ समझ आता।
तू तो ‌ना कुछ भी ... हंह ।
आर्यन के चेहरे पर इतने दिनों में आज हल्की सी मुस्कुराहट ने मेरे दिल को तसल्ली दी  , मैंने उसका हाथ पकड़ा और ऑफिस के कैंटीन  में ले जाकर दो कॉफी ऑर्डर की और पूछा "चल अब बता " ।
मां की परेशानी है अमित।
मां की  !? मैं कुछ समझ नहीं पाया तो उसका मुंह ताकने लगा।
हां !  मां की  !! मां अब ‌ चल फिर नहीं सकती उनकी देखभाल की समस्या अब मेरे और तुम्हारी भाभी के बीच क्लेश और विवाद का कारण बनती जा रही है अब मैं नौकरी करूं या मां की जिम्मेदारी निभाऊं उनकी सेवा करुं ,  और तो और ना तो वो खुद उनकी सेवा करना चाहती है और ना उन्हें वृद्ध आश्रम छोड़ने को तैयार है अब तू ही बता क्या करूं।
मैंने उत्सुकता वश पूछा '' क्यों वृद्ध आश्रम में क्यों नहीं ... तभी मुझे ध्यान आया कि बिजली विभाग में कार्यरत बाबूजी की मृत विधवा को मिलने वाला पेंशन .....  मैं सब समझ गया।
एक विकल्प है मेरे पास तू माने तो , 
वह  झटके से खड़ा हो गया और मेरा हाथ पकड़ कर बोला जो भी है जल्दी बता मैं कुछ भी करने को तैयार हूं  । 
तू मां के  लिए कोई मेट रख ले।
इतना सुनते ही वह मेरा हाथ छोड़कर धम्म से कुर्सी पर बैठ गया।  क्योंकि यह बहुत मुश्किल था मैंने बहुत समझाया तब जाकर वह माना।
क्योंकि मैं एक ऐसी कचरा बीनने वाली को जानता था जो दिल की  बिल्कुल साफ थी  , कभी-कभी कॉलोनी के मोड़ पर आमना-सामना होता तो बड़े अदब से नमस्कार करती मैंने कई बार उसे कुछ मदद करने की कोशिश की पर वह हर बार यही कहती "  साहेब बिना करे के खाए की आदत नहीं है ना फिर कभौ जरूरत परी  तो जरूर कह देंगे "
मैं और आर्यन शहर से सटे झुग्गी वाली बस्ती में दाखिल हो चुके थे बड़े नाले की बदबू  , टाट बोरी और तीन प्लास्टिक के घेरे से बने झुग्गियों में कुछ गरीब मजदूर और कुछ भीख मांगने वाले तथा कचरा बीनने वालों के ही झोपड़िया बनी हुई थी । मैं नाक मुंह पर रुमाल रखकर आगे बढ़ रहा था कि एक टीन के दरवाजे पर मुझे वह बैठी मिल गई जैसे ही नजर पड़ी वह‌‌ खड़ी हो गई  ''अरे साहब आप  ! नमस्कार ।
मैंने हमेशा की तरह उसका अभिवादन स्वीकारा और कहा
हम तुमसे ही मिलने आए हैं। इतना सुनते ही वह जोर से ठहाका मारकर हंसी  ''मेरे को मिलने !?
फिर उस टीन के किवाड़ को खोल कर बोली तो आओ ना साहेब गरीब का झोपड़ी है पर आपको तकलीफ नई होयगी । आर्यन को देखकर मुझे लग रहा था कि उसे काफी घुटन महसूस हो रही है वह मुंह पर रूमाल रखें मेरे पीछे पीछे आ कर ही मेरे पास खड़ा हो गया था वह किसी भी तरह यहां से जल्दी निकल जाना चाहता था उसे इस बात का एहसास भी नहीं था कि वह किस काम के लिए आया है जबकि वहां मेरा कोई कार्य नहीं था स्वयं उसकी मां के लिए था । मैंने भी ना चाहते हुए जैसे उस झोपड़ी में झुक कर अंदर प्रवेश किया तो सब कुछ उल्टा ही  देखा।
झोपड़ी में एक बोरे के सहारे खिड़की से शाम डूबने की हल्की सुनहरी धूप अंदर आ रही थी किसी अच्छे प्रोडक्ट की फिनाइल की खुशबू और पूरी झोपड़ी व्यवस्थित ढंग से वह भी साफ-सुथरी , दो चार बर्तन भाड़े और पास ही खूंटी पर टंगा एक बस्ता  । मैंने आश्चर्य से पूछा तो बताया शराबी पति की शिकार पत्नी  थी एक बेटी है जिसे वह पढ़ा रही है यहीउसके जीवन का उद्देश्य है क्योंकि शराबी पति की मार से वह शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी टूटकर कमजोर हो चुकी थी और इसलिए कचरा बीन कर स्वयं का और बेटी का पालन कर रही थी ।
उसने दो खाली प्लास्टिक की बाल्टीयो‌ को हमारे सामने उल्टा करके रख दिया और उसका तला पोछते हुए बोली साहेब बैठ जाओ  ,
नहीं नहीं बस  .. मुझे उसके इस तरह आदर अभिवादन को देख सचमुच महसूस हुआ कि वक्त और हालात इंसान को क्या कुछ नहीं सिखा देता।
तुम कहती थी ना कि बिना करें कि खाने की आदत नहीं है तुम्हें तो मैं तुम्हारे लिए काम लाया हूं   अच्छा सायेब क्या काम  !?
मैंने आर्यन की ओर इशारा करते हुए कहा यह शेयर कंपनी में बतौर मैनेजर हैं अपनी मां की देखभाल के लिए तुम्हें मेट रखना चाहते हैं इनकी मां पैरालाइसिस की शिकार हैं यानी .....…,
अरे साहब सब समझ गई मैं बुजुर्ग हैं सब संभालना पड़ेगा ।
लेकिन सायेब एक बात मेरे को समझ नई आई की!  आप मेरे जैसी कचरा बीनने वाली अनजान को   ......... ‌  मैंने उससे स्पष्ट कहना ही मुनासिब समझा सो कह दिया  , एक तो तुम साफ दिल की हो और दूसरा यदि तुम्हें सही पैसे मिलेंगे तो तुम और तुम्हारी बच्ची दोनों का जीवन बन जाएगा  ।
ठीक है सायेब आप मेरे पर यकीन किए तो मैं भी आपको निराश नई  करेगी।
मैंने उससे आर्यन का कार्ड देते हुए कहा ठीक है कल से तुम इस पते पर सुबह छः बजे आ जाना ।
जो कुछ बोल रहा था बस मैं ही बोल रहा था आर्यन तो बस चुप बैठा चारों तरफ देख रहा था। जैसे ही हम चलने को हुए आर्यन मुझसे धीरे से बोला अमित इसे समझा तो दो सब कुछ मां का इसे ही करना पड़ेगा पता नहीं उसने क्या सुना क्या समझा तपाक से बोली  '' साहेब समझ गई मैं सब कुछ मतलब सब कुछ टट्टी पेशाब सब ना  ! हो जाएगा कल छः बजे पहुंच जाएगी मैं  । 
मैं अवाक हो गया भला आर्यन के शब्द मेरे कानों तक भी ठीक से नहीं पहुंचे थे फिर इसने कैसे सुन लिया !? 
तभी उसके दूसरे शब्दों ने मुझे मन की गहराइयों से सोचने पर मजबूर कर दिया मुंह फाड़कर क्या देखते सायेब ये  छोटी-छोटी झुग्गी झोपड़ी और छोटे मकानों की मांयें अपने बच्चों का टट्टी पेशाब अपनेईचच हाथों से धो धो कर बड़ा करके बड़ी कोठी में बैठा देती हैं जब बेटा बड़ी कोठी में बैठ जाता है तो फिर उसी झुग्गियों और छोटे मकानों से उनकी गंदगी धोने धुलाने को बाई रखते हैं ।
और एक बात बोलूं सायेब बखत बखत की बात है की मां को अपने बच्चे की गंदगी धोने में घिन नहीं आती लेकिन पता नहीं क्यों बड़े होकर बच्चों को ...........!?
सचमुच आर्यन का तो मुझे पता नहीं लेकिन मेरा मन मुझे अंदर तक झकझोर गया कहने को उस कचरा बीनने वाली की सोच पर और सच ही है  ! ना तो इंसान अपने बीते हुए वक्त से कुछ सीख लेता है  !! और ना ही आने वाले वक्त को पहचान पाता है ।  लेकिन यह वक्त की बात है कि वक्त बदलते देर नहीं लगती।


संतोष शर्मा शान
हाथरस


 



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