संयुक्त परिवार-मनोरमा


*संयुक्त परिवार के विघटन का समाज पर प्रभाव व फायदा*


वर्तमान समाज एकल परिवार की अवधारणा को लेकर चल रहा है ।एकल परिवार में कुछ समय पहले तक पति पत्नी और बच्चों का अस्तित्व वजूद में था। आज पति -पत्नी को ही एकल परिवार माना जाने लगा है। क्यों कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने बमुश्किल पाँचवी की शिक्षा तक ही बच्चों को परिवार के बीच रहने दिया ।बहुत कम परिवार होंगे जहाँ इंटर तक बच्चे परिवार के मध्य रहे। उसके बाद हाई एजूकेशन  फिर जाब के चलते बच्चे अलग शहर में ही रहने को मजबूर हो जाते हैं ।और वही उनकी आदत भी बन जाता है।
संयुक्त परिवार के विघटन का समाज पर प्रभाव जानने से पहले कारण जानलेना उचित होगा।
*विघटन के कारण*
पारिवारिक संपत्ति, पारिवारिक झगड़े,असमान आय-व्यय,कार्यों का असमान वितरण,महँगी शिक्षा प्रणाली,विभिन्न आर्थिक संगठन,उन्मुक्त विचारधारा,औद्यौगीकरण, नगरीकरण,महिला सशक्तिकरण ,जीवन साथी चुनने की आजादी,आवास की समस्या,कृषि व ग्राम उद्योगों की गिरती हालत ,अंग्रेजी का बढ़ता प्रभाव।
*समाज पर विघटन का प्रभाव*
परिवार के विघटन का समाज के मूल भूत ढाँचे पर अधिक प्रभाव पड़ा। इसमें सबसे पहले परिवार के सदस्य मूल से उखड गये। अंकुश खतम होने से रोक -टोक खतम हुई। परिवार के प्रति अपनत्व खतम हुआ। 
विवाह व्यवस्था में परिवर्तन हुआ। लगभग तीस पैंतीस साल पहले अठारह -उन्नीस साल की लड़की की शादी हो जाती थी ।जिससे वह परिवार के साथ समायोजन कर लेती थी। आज शिक्षा की आजादी के चलते लड़के-लड़कियाँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं ।बड़े बड़े जिम्मेदार  पदों पर रहते हुये उनकी शादी की आयु 18-19से बढ़ कर 30-32तक हो गयी।
जीवनसाथी चुनने की आजादी के चलते जात पाँति के नियम कानून टूटने लगे ।लव मैरिज को मान्यता मिली।
भारतीय समाज की सोच व विचारधारा के साथ रहन सहन में भी आमूल चूल परिवर्तन हुये ।दिखावा व अंग्रेजी शिक्षा को ज्यादा महत्व दिया गया जिसका समाज के साँस्कृतिक स्वरूप पर भी पड़ा। 
तीज त्यौहार को रुढ़ि समझा जाने लगा ।विभिन्न मत हो गये । अंग्रेजी त्योहार को समाज में मान्यता मिलने लगी। वेशभूषा,खान-पान,रहन-सहन सभी पर इस विघटन का प्रभाव पड़ा।
*फायदा*- एक तरफ परिवार विघटित हुये तो दूसरी तरफ कम उम्र में शादी ,बेमेल रिश्ते से बहुत हद तक समाज को मुक्ति मिली। शिक्षा का स्तर सुधरा ,कुयें के मेढ़क न रह कर संसार को देखने की दृष्टि विकसित हुई। पहले बच्चे अपने मन की बात नहीं कह पाते थे ,उसमें बदलाव आया। पिता पुत्र पुत्री माता अक्सर दोस्ताना व्यवहार रखते हैं। समस्या पता होने से निराकरण भी शीघ्र हो जाता है। लड़कियों को अब अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए पढ़ाया जाता है ,महज शादी या अच्छा घर वर पाने के लिए नहीं।
अंत में यही कहूँगी हर परिवर्तन ,बदलाव की हवा कुछ तोड़ती है तो कहीं जोड़ती है। हर पुरानी चीज सोना नहीं होती वैसे ही हर नयी चमकीली चीज भी सोना नहीं होती। बदलाव को सकारात्मक लेने पर उसके उचित परिणाम भी दिखते हैं और नकारात्मक लेने पर हानि ही नज़र आती है।



मनोरमा जैन पाखी



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