सपना कार्यक्रम के तहत
होती है जब बन्द पलकें
कोई नहीं होता है पास
मैं अपनी फैन्टसी में जीती हूँ
एक सपनों का राजकुमार बन
मेरी दुनिया में आता है
उसके साथ होने का अहसास
न जाने क्यों होता है
रात झिलमिलाते तारे,चाँद
के बीच खुद को पाती हूँ
आहिस्ता-आहिस्ता ढल गई जिंदगी
आज भी स्मित मुस्कान में जीती हूँ
हैरत है मुझे बदलते वक्त औ' इन्सान
बदलते रिश्ते और यथार्थ की ज़मीं
सपनीले संसार सपनों से परे
हरपल हलचल सी दिल में
क्योंकि वहाँ
सपनों का राजकुमार आज भी
मुस्कुराता है ।
अनीता पंडा,शिलांग
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