सपना-ममता

कार्यक्रम सपना के अन्‍तगर्त


बड़ी मस्सकत से खुद को
अलग करने की
 कोशिश  करती हूँ 
मगर हर दिन हकीकत को
 सपना समझा करती हूँ 
बुढे जिस्म को शरीर से 
अलग करती हूँ 
नहीं  दिखता यहाँ  
मेरा अपना
अपने दुखो को तुमसे
 अलग समझती हूँ 
तमाम बातों को 
भूल कर जीना चाहा 
मगर  हर दिन 
खुद से झगड़ती हूँ 



*ममता गिनोड़िया मुग्धा
जोराहाटा आसाम




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