सपना कार्यक्रम के तहत
वो कोई अपना सा मेरा ,
या था कोई सपना मेरा ।
समन्दर में दर्द के डूबकर ,
दिशाएं लहरो की मोड़कर
तभी थामा था हाथ मेरा ,
बना था किनारा वो मेरा ।।
पुकारा था नजदीक आकर,
नाम मेरा ,उसने जगाकर ।
कुछ पल का साथी था मेरा ,
बना था जो सहारा मेरा ।।
वो कोई अपना सा मेरा ,
या था कोई सपना मेरा ।
नींद नहीं ऑंखों में मेरी ,
बिखर गया वो सपना मेरा ।
टूटें सपने का वो साथी,
नहीं किनारा था वो मेरा ।।
डूबती उतरती हूं जब मैं,
पीडा़ के अथाह समन्दर में ।
खामोशी से आगे बढकर ,
थाम लेता कभी हाथ मेरा।।
वो कोई अपना सा मेरा ,
या था कोई सपना मेरा ।
जीवन के इस भवसागर में ,
नईआशा सहारा मेरा
चमकता है दूर लहरों में,
बन आकाशदीप मेरा ।।
साथी था टूटे सपने सा ,
था सुहाना किनारा मेरा ।
वो कोई अपना सा मेरा,
या था कोई सपना मेरा ।।
सरिता सिंह स्नेहा
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