सपना कार्यक्रम के तहत
इस दुनिया से
अलग दुनिया
होती है सपनों की
मैं भी सपने बुनती हूँ
सपने में
खुले आसमान में उड़ती हूँ
ऊँची बहुत ऊँची
उड़ान भरती हूँ
तितली की भाँति
कभी इधर कभी उधर
बहकते बादलों के साथ
ढूंढती हूँ उन्हें
जो सितारे बन
आकाश में जगमगाते हैं
उनसे मिलकर अनकही
बातें करना चाहती हूँ
कुछ कहना
कुछ सुनना चाहती हूँ
हँसना खिलखिलाना
चाहती हूँ उनके साथ
जो एक झटके में
हमें छोड़ कर चले गए
तोड़कर सारे बंधन
तभी किसी ने आवाज दी
मैं जग पड़ी
सपना था टूट गया और
मैं फिर अपने
विचारों मे खो गई।
विमला शर्मा "बोधा जोराहाट आसाम
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