एक दिन आपका में निशा की लघुकथा
जब भूख से व्याकुल होकर वह घरों में काम ढूंढने निकली थी। उस दौरान मेरे घर की घंटी भी उसने बजाई थी और तभी उस मूर्ति नाम की शरीर से बूढ़ी दिखने वाली दुखियारी औरत से मेरी मुलाकात हुई थी।
चालीस साल की मूर्ति आज भी अपनी मांग में सिंदूर लगाए रहती है। उसके लिए जिसने तेरह साल की छोटी सी आयु में छल द्वारा उसे ब्याह का लालच देकर उससे संबंध बनाया था। सोलह साल की उम्र में मूर्ति के दो बेटे भी हो गए थे। पहला बेटा तो होने के कुछ दिन बाद ही चल बसा था।
दूसरा बेटा शंकर अब 25 साल का हो गया है। मूर्ति ने जिसे अपना सब कुछ माना था। वह बी एस एफ में काम करने वाला सरदार गुरदयाल सिंह था। जो पहले से ही शादी-शुदा चार बच्चों का पिता था। जब उसने मूर्ति से ब्याह का स्वांग रचा था। उस समय उसकी आयु पैंतीस की थी। जब तक तिनसुकिया में उसकी पोस्टिंग थी। तब तक पांच-छह साल वह नाबालिग मूर्ति से संबंध बनाता रहा। जब वह पंजाब गया तो फिर उसने पलट कर मूर्ति का मुंह तक नहीं देखा। उस सीधी-सादी मूर्ति ने कई घरों में काम करके अपने बेटे को पाल कर बड़ा किया। दुख के कारण मूर्ति आज चालीस की उम्र में भी साठ की लगती है। आज पच्चीस साल बाद भी मूर्ति अपनी मांग में उस सरदार के नाम का सिंदूर लगाती है और अपने आप को पंजाबी कहती है। इसे मैं क्या कहूँ ? नारी का पवित्र प्रेम या पुरुष की दानवता।
निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया, असम
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