28 अप्रैल, 2020
चण्डीगढ़
आत्मीय,
अचम्भित हो न, ये पत्र मैं तुम्हें क्यों लिख रही हूँ! कहने को तो मैं तुम्हारा ही अक्स हूं और तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद भी नहीं है| जीवन के इस रंगमंच पर हमने विभिन्न भाव,उतार-चढ़ाव, बदलते रंग, मौसम और सृष्टि के सभी विरोधाभास को अंगीकार किया है| मैंने जहाँ जीवन को गति व प्राण दिये हैं वहीं तुमने कल्पना के इंद्रधनुषी रंगों से इसे अलंकृत किया है|
एक दूसरे के विपरीत होते हुए भी हम दोनों एक दूसरे के बिना अपूर्ण हैं| तुम किसी नटखट बालक की तरह चंचल, अस्थिर, नटखट और हठी हो, कभी-कभी अपनी बेफिक्री में इतने खो जाते हो कि तुम्हें किसी की बात सुनाई ही नहीं पड़ती!
इसके विपरीत मैं शान्त,गम्भीर,विरक्त व ओजमयी किसी दार्शनिक की तरह,जो कदम-कदम पर तुम्हें सदैव सत्यता का ही बोध कराती हूँ ,पर तुम हो कि मुझे देखकर भी नहीं देखना चाहते |
आज तुम्हें व्यथित देखा, तो तुम्हें आवाज़ भी दी किंतु हमेशा की तरह तुमने फिर से अनसुना कर दिया | मैं जानती हूं कि आज भी वक्त ने तुम्हें फिर से दोराहे पर ला खड़ा कर दिया है, जहाँ तुम्हें अपने सपने और जिम्मेवारियों में से किसी एक को चुनना है | आज फिर तुम मस्तिष्क और ह्रदय के द्वंद्व में उलझ गए हो| एक बात कहूं, कुछ पल के लिये अपने अतीत में झाँक कर देखो... अब तक क्या करते आए हो?
तुम मन हो,तुम्हारा भी एक संसार है जो रचनात्मकता का मूल आधार है | जितना अभिलाषा को दबाओगे उतना ही वो बढ़ती जाएगी और अंत में वो ही तुम्हारे अवसाद का कारण बनेगी | तुम्हें व्यथित करती ही रहेगी | जिज्ञासा व आकांक्षा का समाधान यदि समय रहते हो जाए तो जीवन यात्रा सहज हो जाती है| समस्या का दमन करने से या फिर उससे भागने से कोई हल नहीं निकलता, अत: उसका निदान हित या अहित को ध्यान में रखकर ही लेना होता है|
विपरीत परिस्थितियाँ सदैव तुम्हारे समक्ष आती रहेंगी और इनसे बाहर भी तुम्हें खुद ही निकलना है, कब तक सहारे की तलाश करते रहोगे? इस नश्वर संसार में प्रत्येक अपनी समस्याओं में उलझा हुआ है कोई भला कब तक तुम्हें सहारा देगा | तुम्हें अपने परिश्रम, आत्मबल,धैर्य, संतोष और मनोबल को बढाना होगा क्योंकि ये ही तुम्हारा संबल बनेंगें|
और अंत में तुम्हें मेरा भी ख्याल रखना होगा, मेरी चेतावनी को कम से कम एक बार तो सुनना होगा | मेरी बात को तुम मानो या ना मानो ये तो तुम पर ही निर्भर है क्योंकि तुम मन जो ठहरे, करनी तो तुम्हें अपनी ही है |तुम्हारी सहायता को सदैव तत्पर,
तुम्हारी अपनी
आत्मा
किरण बाला
(चण्डीगढ़)
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