तरस खाना-सुरेंद्र

(हास्य कविता....)


विवाहित जीवन का शगूफा 


एक मित्र ने दूसरे मित्र से पूछा 
सफल विवाहित जीवन का 
क्या है ताना -बाना? 


मित्र ने जवाब दिया 
हमने तो शादी करवाकर 
केवल है इतना जाना 
पत्नी की जली कटी सुनने का 
लगा रहेगा आना -जाना 
तुम दिल पर कोई बात ना लेना 
ना तुम जरा भी घबराना 
कच्ची -जली रोटियाँ पकेंगी 
उनके आदि हो जाना 
चाहे कितनी भी दिक्कत हो 
होठों पर मुस्कान लाना 


पत्नियां पहले होती थी सीधी व शांत 
अब गुजर गया वो ज़माना 


उस मित्र की बात सुनकर 
दूसरा मित्र चकरा गया 
और कहने लगा 
"हे प्रभू हर शादीशुदा इंसान पर 
इतना सा तरस खाना, 
उनको अपनी पत्नी के 
एैसे बरपते कहर से बचाना



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 

झज्जर, ( हरियाणा ). 



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