तुम भूल गई मुझको मैं तुम्हें भूल नहीं पाया,
तुमको ही ढाल के गीतों में मंचों से गाया।
किसी और की दुल्हन बनके तुम छोड़ गई मुझको,
पर मैं तो और किसी का हो भी नहीं पाया।।
तुम भूल गई मुझको मैं तुम्हें भूल नहीं पाया..
कितना आसान बदलना मुश्किल एक सा रहना है,
आसान इश्क़ नहीं है जितना असान कहना है।
मैं समझ गया दुनिया को ठोकर है लगी जबसे,
नहीं कोई शिकायत तुमसे हर ग़म हँसके सहना है।।
मेलों वQक महफ़िलों में भी तन्हा खुद को पाया,
तुम भूल गई मुझको मैं तुम्हें भूल नहीं पाया…
मोहब्बत न कोई करना मैं सबसे यही कहता हूँ,
जबसे की मैंने मोहब्बत मैं गुमशुम सा रहता हूँ।
ये बड़ी मोहब्बत क़ातिल हर पल तड़पाती है,
मैं दर्दोसितम को दिलबर के हँसके सहता रहता हूँ।।
जब जब मैंने कुछ सोचा तेरा खयाल आया,
तुम भूल गई मुझको मैं तुम्हें भूल नहीं पाया...
©️ *राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'*
0 टिप्पणियाँ