पुस्तक दिवस विशेष
सुनो
पुस्तक दिवस है न
कितनी ही किताबें पढ़ीं है तुमने
और भी पढ़ोगे
न जाने कितनी
कभी कोशिश की क्या तुमने
मुझे या ख़ुद को पढ़ने की
बोलो
क्यों मेरे ज़ेह्न के उन पन्नों पर
तुमने पढ़ने का हक़ नहीं जाना
जिन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़
हर जन्म
तुम्हारे लिए ही लिखा मैंने
क्यों नहीं पढ़ते तुम
अपने जीवन के
वो अधखुले पन्ने
जिन्हें मेरे साथ
पढ़ना शुरु किया था
कभी तुमने?
सुनो
तुम कितनी भी पुस्तकें पढ़लो बेशक
मगर अधूरे थे और अधूरे ही रहोगे
मेरे बिन
हर जन्म ही,,,,
और मैं भी तो
रहूँगी अनपढ़ ही
तुम्हें बिन पढ़े,,,
*शुचि 'भवि'*
भिलाई,छत्तीसगढ़
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