जन्म हो अगर दोबारा तो
मिले भारत वतन प्यारा
हिमालय फिर वही ऊंचा
हो गंगो चमन की धारा
लह लहाती हों फसलें
खेत सोना उगलते हों
प्रीत की रीत हो जहां
नहीं नफरत की धारा हो
अतिथि देवो भव जैसी परंपरा
स्वागत में पलके बिछाए हो
वतन की आन के लिए
हां इसकी शान के लिए
खड़ा हो हर एक मां का लाल
हथेली जान पर लिए
शहादत हो किसी की भी
हम अश्रु आंख में रखकर
कफन वह तीन रंगों का
सदा तैयार है रखते
धधकती आग सीने में
शत्रु विनाश के लिए
खड़े हैं सरहद पर हम
तिरंगा शान से लिए
नीता चतुर्वेदी
विदिशा मध्य प्रदेश
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