कविता
हम बनेंगे दिए , इस वतन के लिए,
हम जलेंगे बुझेंगे वतन के लिए।
द्वेष से देश में अंधियारा हुआ,
हर अपना यहाँ बेसहारा हुआ,
प्रेम धारा बनेंगे वतन के लिए,
हम सहारा बनेंगे वतन के लिए।
तिमिर घना है कर्म पथ पर,
अरि चढ़ बैठे रण के रथ पर,
हम मशाल बनेंगे वतन के लिए,
करवाल बनेंगे वतन के लिए।
मेरा देश महामारी से रोगी हुआ,
वासना का समाज भुक्तभोगी हुआ,
उपचार बनेंगे वतन के लिए,
संस्कार बनेंगे वतन के लिए।
नैराश्य से भर गया है हृदय,
वैमनस्य से हुआ प्रेम क्षय,
आशा गीत बनेंगे वतन के लिए,
प्रेम प्रीत बनेंगे वतन के लिए।
प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
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