वतन-संतोष शर्मा

मेरा फ़र्ज़ भी तू  मेरा धर्म भी तू
मेरा कर्म भी तू ऐ मेरे वतन 
तू है तो है यह गांव देश 
तुझको नमन मेरा तुझको नमन


जहां चार वेद और छह शास्त्र में, सत्य कर्म का खिलें  उपवन‌ ।
गंगा जमुना त्रिवेणी का 
जहां मिले धार व है संगम ।।
हीरे मोती जहां उगते हैं 
ऐसा है भारत मेरा वतन 
तुझको नमन मेरा तुझको नमन


झुठला नहीं सकते इस भूमि पर कितने ही द्विज विद्वान हुए ।
रामायण के राम यहांऔर अतुलित बल के धाम हुए ।।
कृष्ण भूमि पर आज भी 
बिसराते भक्ति में तन मन
 तुझको नमन मेरा तुझको नमन


संकट के समय में याद किया
भगवान को जब मेरे देश ने ।
आकर त्रिदेव बन खड़े हुए किसान चिकित्सक और 
जवान के भेष में ।।
स्वार्थ त्याग कर जनहित में न्योछावर कर जाते
तन मन उनको नमन मेरा उनको नमन


अरदास मेरी उस परम शक्ति से
युग युग तक देश महान रहे। खुशियों से हरा-भरा सदैव
 यह मेरा हिंदुस्तान रहे  ।।  मुरझाए कभी ना इसका चमन
 सदभाव एकता प्रेम भरा 
रहे मेरा वतन रहे मेरा वतन


मेरा फर्ज भी तू मेरा धर्म भी तू मेरा कर्म भी तू ऐ‌‌ मेरे वतन
 तू है तो है यह गांव देश
  तुझको नमन मेरा तुझ को नमन 


संतोष शर्मा  " शान "
हाथरस



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ