वेद हो या पुराण-निशा

विश्व पुस्तक दिवस पर 


जीवन की पूंजी किताब
रखती संजो कर कुछ भाव
आने वाली पीढ़ी को बढाने आगे
और मंथन करने के लिए बार बार।


वेद हो या पुराण आज सहज सुलभ
रूप में किताब के 
वरना बहुत मुश्किल था पांडुलिपियों 
का हर घर घर में मिलना।


मेरी लिखिति कविता कहानियां हो गई
संकलित तैयार
बनने को एक मनोभाव की सम्पूर्ण किताब।


जिन्हें जरूरत है बस बंध कर आने की सबके हाथ
जाने के बाद मेरे इस दुनिया से, रह जायेगी मेरी किताब।


जानेंगे लोग मुझे मेरे विचार मेरी भावना को तब 
पढ़ कर ही तो मेरी किताब पढ़ कर ही तो मेरी किताब।


मैं,मेरी मुस्कान,मेरा द्वन्द,मेरी उपेक्षा
तिरस्कार समाहित कर रही हूँ
लिख कर अपनी बात बनाने को एक किताब ।



निशा"अतुल्य"
देहरादून उत्तराखण्ड


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