पुस्तक दिवस पर विशेष
विचारों के तानो-बानों
अरसे के कठोर श्रम और
तपस्या की यात्रा के बाद लिखी
हज़ारों हज़ार हाथों में
वह पुस्तक
केवल पुस्तक नहीं होती
कहीं मन्दिर का प्रसाद
कहीं ज्ञान का भण्डार
तो कहीं बेवजह - बेकार
कचरे-सी,
बेक़सूर पुस्तक
हमेशा चुप रहती है
हर गुनाह और
गुनाहगार
तरफ़दार
शौकीनों और
आलोचकों को
माफ़ करती
अपने इतिहास को
क़ायम रख
ग्रंथालयों में सजती,
धूल की परतें ओडे़
कीड़े-मकोड़ों द्वारा
पढ़ी जाने वाली-
क़दरदान हाथों का
इंतज़ार करती पुस्तक,
शिखर तक पहुँचाने में सक्षम
जो सहारा लेते
और
वे हाथ, जो कचरा ढोते
चुन नहीं पाते अपने लिये
उन्हें कचरे जैसा छोड़
आगे बढ़ जाती है पुस्तक..!
-के सी दुबे "कैलाश"
महालक्ष्मी नगर, इन्दौर-10
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