विश्‍वासघात- इंदु

आज राधा बहुत प्रसन्न थी।उसकी प्रसन्नता उसके मुखमण्डल से ही झलक रही थी।आज ही तो उसे पता चला था कि वह बारा माँ बनने वाली है।मोहन दो एक दिन से उससे बहुत रूखा व्यवहार कर रहा था। शायद इसकी वजह भी थी उसके पास। मोहन राधा को शक की निग़ाहों से देखने लगा था।उसकी इस गलतफहमी के लिए अखिल जिम्मेदार था।वह मोहन की कम्पनी का ही मेम्बर था। और राधा के कॉलेज का दोस्त भी था।जब भी वह मोहन के साथ घर आता था कोई न कोई ऐसी हरकत अवश्य करता जिससे मोहन उन दोनों(राधा और अखिल) के बीच कोई नाजायज सम्बन्ध समझने पर मजबूर हो जाता था।


राधा मन ही मन सपने बुनने लगी कि जैसे ही मोहन ऑफ़िस से घर आएँगे वह कैसे उन्हें यह शुभ समाचार देगी।राधा के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट यह सोचकर ही दौड़ गई कि जब वह पहली बार गर्भवती हुई थी,और जब उसने मोहन को यह खबर सुनाई थी,तो उसने कितने प्यार से उसे अपनी बाहों में छुपा लिया था।तब उसे एक ऐसी ख़ुशी मिली थी जिसका वर्णन करने के लिए शायद शब्द भी कम पड़ जाएँगे। वह अपनी अतीत की यादों में खोकर कहीं दूर चली जा रही थी...बहुत दूर...
कितने प्यारे दिन थे जब उसने गुड़िया को जन्म दिया था।जिसे मोहन प्यार से गुड्डा कहकर पुकारते थे।तभी डोर बैल बजी और राधा न चाहते हुए भी अपने दिवास्वप्न से जाग उठी।उसने दरवाजा खोला सामने मोहन खड़े थे।इससे पहले कि वह अपने हृदय की धड़कनों से मोहन को रूबरू कराती, उसे अखिल भी साथ में आता हुआ दिखाई दिया।उसे देखकर राधा का हृदय जल उठा।जी चाहता था कि उसे धक्का देकर घर से बाहर निकाल दे।यही तो वह व्यक्ति था जो उसकी सुख भरी जिंदगी में दुःख का विष घोल रहा था। राधा को समझ में नहीं आता था कि अखिल मोहन से कौन से जन्म की शत्रुता का बदला ले रहा है।उसने अपने पति मोहन को कई बार समझाने की कोशिश की थी । किन्तु उस पर कोई असर नहीं हुआ।न ही शक के बादल छटे , न ही प्रेम का सूर्य उदित हुआ।
रात को जब रसोई घर का कार्य समाप्त करके राधा सोने के लिए कमरे में आई,तो मोहन मैगजीन पढ़ रहा थे। राधा ने मोहन के हाथ से पत्रिका लेकर अलग रख दी।वह उनके निकट बैठकर प्रेम भरी दृष्टि से उन्हें निहारने लगी।मोहन ने पुनः पत्रिका हाथ में उठाकर रूखाई से पूछा"कोई ख़ास बात है?" राधा ने शर्माते हुए बताया कि वह गर्भवती है। तब मोहन ने तपाक से कहा"ओह यह तो बड़ी ख़ुशी की बात है। तब तुमने यह शुभ समाचार अखिल को दिया कि नहीं? क्योंकि ऐसी खुशखबरी पर पहला अधिकार होने वाले बच्चे के पिता का होता है।" राधा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा"मोहन यह तुम क्या कह रहे हो ? तुम्हारा दिमाग तो ठीक है।? तुम इतनी घटिया बात मुख से कैसे निकाल सकते हो मेरे बारे में? तुम्हें तनिक भी लज्जा नहीं आयी। मोहन ने  आग्नेय दृष्टि से उसे देखा और पूछा " अच्छा  यदि यह सब झूठ है तो किस अधिकार से अखिल तुमसे इतना घुलता मिलता है। क्यों तुम्हें सामने देखकर उसका चेहरा खिल उठता है?"
राधा निरुत्तर हो चुकी थी। उसके पास कहने के लिए शब्द ही नहीं बचे थे। क्योंकि उसके चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लग चुका था।
वह अपने बहते हुए अश्रुओं को पोंछती हुई गुड़िया के पास दूसरे कमरे में जाकर सो गई। फ़िर एक दिन कुछ अप्रत्याशित घटित हुआ। अखिल और मोहन देर रात बैठे मदिरापान कर रहे थे। अखिल ने बहुत ज़्यादा शराब पी ली तो वह अनाप शनाप बोलने लगा। "अरे यार मोहन कुछ भी कह लो तेरी पत्नी है बहुत जिद्दी। मैंने उसे कई बार अकेले में मोहित करने की कोशिश की। पर मुझे घास ही नहीं डालती। एक दिन तो कह रही थी कि बस तुम्हारी वजह से ही मुझे सहन करती है। मैं तो सोच रहा था कि तुमसे अपने बिजनेस में हुए नुकसान का बदला तुम्हारी बीवी को अपने प्यार के जाल में फंसाकर लूंगा। पर वह फँसती ही नहीं। किस तालाब की मछली है? मोहन हतप्रभ होकर उसके विश्वास घात भरी योजनाओं को सुनता रहा। आज उसे पता चल गया कि उसके मित्र ने उसके साथ कितना बड़ा विश्वासघात किया है। यह कहते कहते अखिल मूर्छित हो गया। मदिरा ने उसे अर्धचेतन अवस्था में ला दिया था। वह राधा के प्रति अपने शुष्क व्यवहार के विषय में सोचकर ही आत्मग्लानि से भर उठा। और बार बार यही सोचने लगा कि आखिर कैसे वह राधा का सामना करेगा। उसने राधा के चरित्र पर कितने लांछन लगाए हैं?
उसे अपने द्वारा किया गया एक एक अत्याचार याद आने लगा। अखिल के विश्वासघात का परिणाम  राधा को भोगना पड़ रहा है। किन्तु अब ऐसा नहीं होगा,वह अपने अपराध की क्षमा याचना कर लेगा.. उसके हृदय राधा के प्रति अगाध प्रेम से भर उठा...



प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर


 



उत्तरप्रदेश


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