व्‍यस्‍तता-ज्‍योति

सुहाना की नानी उससे असीम स्नेह करती थी,जब भी छुट्टी होती वह अपनी नानी के घर पहुंच जाती थी। समय रेत की तरह फिसल रहा था ,नानी बूढ़ी और सुहाना बड़ी हो गयी थी।शादी के बाद कुछ दिनों तक शादी पार्टी में जाना हो जाता था,कुछ समय बाद सुहाना घर की बड़ी बहू होने के साथ साथ दो बच्चों की माँ होने के कारण कहीं भी जाना आना बंद कर चुकी थी,जाती भी थी  तो कुछ देर के लिए ही बस। तेरह साल हो गए थे शादी को,सुबह सुबह ही मामा जी का फ़ोन आया,सूचना मिली नानी देवलोक को गमन कर गईं। सुहाना दुख के सागर में डूब गई,बिलख बिलख कर रोने लगी, नानी का दिया प्यार आँखो में उतर आया।  पति बहुत सज्जन मिले थे सुहाना को साथ लेकर तुरन्त निकल लिए रास्ते भर नानी की बातों को उनकी  याद कर रोये जा रही थी, मन में ग्लानि भी थी कई बार सोचा मिल आती हूँ पर जाना ही नहीं हुआ। नानी के गाँव पहुंच गयी थी सुहाना,नानी की पालकी तैयार हो चुकी थी बस ले जाने की देर थी। मामा जी सामने ही खड़े थे सुहाना ने किसी को नहीं देखा सीधे जाकर मामा जी के गले लगकर रोने लगी मामा जी लगातार बहती आँखों को पोंछते हुए सुहाना को चुप कराने लगे...."पगली मुझे देख मैं तो अनाथ हो गया,पहले पिता जी का सहारा छुटा अब माँ भी छोड़कर चली गयी,मैंने तुम्हें कितने फ़ोन किये एक बार मिल जाती तो अच्छा होता"!
सुहाना पछतावे की आग में जल रही थी, मन ही मन सोच रही थी काश मैं अपनी व्यस्तता से थोड़ा बाहर निकल कर अपनी माँ जैसी नानी से मिल लेती तो ये उम्र भर की वेदना मेरे मन को नहीं कोसती.....सुहाना का मन बार बार एक ही प्रश्न कर रहा था ... क्या आज हमारी दौलत रिश्तों से महँगी हो गयी?


ज्‍योति जयपुर




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