यादें- स्वाति

यादों के कोने से 
एक गेंद लुढ़कती आयी,
न जाने कितनी यादें 
संग अपने लायी।
बचपन के सुनहरे दिन, 
वो मौज करना,
ननिहाल जाना,
नानी से बतियाना।
वो मीठे आम,जामुन खाना!
वक्त ने ली कैसी अंगड़ाई,
ना वो जामुन हैं, ना ही अमराई।
अब यहां आता है ना कोई
सूना हैं घर सूनी अँगनाई।
बाल गोपाल भूले अपने रिश्ते,
वक्त के साथ खो गए नाते।
पूरा घर बिखरा है पुरानी यादों से
कोई कहां कोई कहां
घर खाली अपनों से!
 तभी आँगन में लगा मोगरा इठलाया,
देख पगली ये आम फिर बौराया,
कालचक्र हैं ये कुदरत का,
जो बना हैं वो फना होता हैं।
लेकिन प्रेम ही जग में ऐसा हैं,
जो रूप बदल  कर लौटा हैं,
मेरे सपने भी सच होंगे,
उम्मीद न छोड़ तू अपनों से।


सौ.स्वाति श्रोत्री,167 तिलक नगर मेन इंदौर,MP



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