आज लेखक/रचनाकार केवल पढा़ना सुनाना जानते हैं ,पढ़ना और सुनना नहीं
आज के समय में लेखक/रचनाकार अपनी रचना सुनाने या पढा़ने में आतुर होते हैं और रचना पर लाइक व कमेंट्स की भी अधिक चाहत रखते हैं..पर इसके ठीक विपरीत दूसरे रचनाकार की रचना पढ़ने की या सुनने की अवहेलना करते दिखाई देते हैं.. ये सही नहीं है। जब तक हम दूसरे की रचना को नहीं पढे़गे और सुनेंगे तथा प्रतिक्रिया देंगे तो कोई हमारी रचना को कैसे सुननेें या पढ़ने का इच्छुक होगा।तारीफ हरेक इंसान चाहता है और किसी की रचना को बढिया कहकर मनोबल बढ़ाना, उत्साह वर्धन करना साहित्यधर्मिता है जिसका निर्वहन सबको करना चाहिए। हमें एक अच्छे साहित्यकार को पढ़ने व सुनने में भी उतना ही समय देना चाहिए जितना हम स्वयं को देते हैं।
अच्छा साहित्यकार ज़रूरी नहीं है कि मंच का बड़ा कवि या टी वी चैनल्स के रचनाकार हों। बहुत से रचनाकार हैं वो अपने लेखन को बहुत बढ़िया लिखते हैं और बाहरी चमक से दूर रहकर साहित्य सृजन करने में व्यस्त हैं और विभिन्न विधाओं में पारंगत हैं बहुत से उनके संग्रह हैं जिन्हें हमें पढ़ना चाहिए उनको सुनना चाहिए। दूसरों को पढ़ने व सुनने से हमारे पास शब्दकोश में वृद्धि होगी और साहित्य की विविध विधाओं को समझने की जानकारी मिलेगी। जितना अधिक हम अच्छा साहित्य पढे़गे और गूढ़ अध्ययन करेंगे उतना हमारा लेखन समृद्ध व सुदृढ़ होगा। अच्छे लेखन के लिए महत्वाकांक्षा और हमारे द्वारा लिखे गए लेखन पर पकड़ मजबूत होनी चाहिए।
एक सच्चे साहित्यकार का ये फर्ज बनता है दूसरों की रचना में अच्छाई ढूँढे न कि किसी को गिराने की कोशिश। हम यदि दूसरे की रचना में हमेशा कमियां हीं बताते रहेंगे तो कोई रचनाकार आपको बड़ा साहित्यकार समझकर अपनी रचना पढ़ने को नहीं देगा जिससे आपके सम्मान को भी ठेस पहुँचेगी। विद्या तो माँ शारदे का वरदान है किसी के अच्छा या खराब कहने से गलत नहीं हो जाएगी ये विद्याधन ही है जिसे कोई छीन या चुरा नहीं सकता ये तो मस्तिष्क का अनमोल खजाना है जिसको जितना पढे़गे उतना बढ़ेगा। इसलिए यदि हमारे अंदर दूसरों को पढ़ने या सुनने की क्षमता नहीं है तो हमें ये उम्मीद कतई नहीं रखनी चाहिए कोई हमें पढे़ं और सुने।
धन्यवाद
©️मौलिक
रीता जयहिन्द
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