आनलाइन क्लास का सच, हकीकत के धरातल पर
---------------------------------------------------------------
महामारी के दौर में लॉकडाउन के चलते बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान न आ जाए, इसके लिए शैक्षणिक संस्थानों ने आनलाइन क्लास को माध्यम बना पढाई की शुरुआत कर दी है | क्या वास्तव में इसका पूरा लाभ विद्यार्थियों तक पहुँच पा रहा है अपितु नहीं, यह सोचने का विषय है | विद्यालय चाहे सरकारी हो या फिर गैर सरकारी, बच्चों को पढाई से जोड़ने का यही एकमात्र विकल्प शेष रह जाता है| यदि हम प्राइवेट सैक्टर के स्कूलों की बात करें तो वहाँ पर 80%अभिभावक सक्षम हैं कि वे इसका लाभ उठा सकते हैं | उनके पास पर्याप्त साधन हैं | इसके विपरीत सरकारी विद्यालयों में केवल 20%ही ऐसे विद्यार्थी होंगे जो इसका लाभ ले सकते हैं |
सरकारी विद्यालयों में 80%से अधिक बच्चे उन परिवारों के होते हैं जो मजदूरी करके जीवन यापन करते हैं, घर का प्रत्येक सदस्य किसी न किसी काम में लगा होता है ताकि आराम से घर का गुजारा चल जाए| कहीं-कहीं तो विद्यार्थी को भी मजबूरी में काम करने को विवश होना पड़ता है, यह एक कड़वी हकीकत है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता |
ऐसे में आनलाइन क्लास उनके लिये तनाव का कारण बनती जा रही है | कितने तो ऐसे लोग हैं जिनके पास स्मार्टफ़ोन नहीं हैं, यदि हैं भी तो इतने पैसे नहीं हैं कि इन्टरनेट का इस्तेमाल कर सकें | जहाँ दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं हो पा रहा वहाँ भला कौन कहाँ तक रीचार्ज करा पाएगा | आदेश पारित करना तो सरल होता है किंतु उसका परिणाम क्या निकल कर आ रहा है किसको चिन्ता है? अधिकारियों द्वारा साप्ताहिक रिपोर्ट मांगी जाती है कि बच्चों को कितना लाभ किस ऐप के जरिये मिल रहा है | बच्चों के साथ -साथ यहाँ परेशानी माता-पिता और शिक्षकों के लिये भी है | एक कक्षा के व्हाट्सप ग्रुप पर बच्चे द्वारा ये रिकार्ड करके भेजना कि "सर जी, अब और काम मत दो, बाकी का काम स्कूल खुलने पर दे देना"बच्चे की मानसिक स्थिति को दर्शाता है कि वह अब इन सब से थक चुका है |छोटे बच्चे,अनपढ़ माता-पिता भला किस प्रकार इसका लाभ उठा सकते हैं ! आॉनलाइन लैक्चर किसी टेपरिकार्ड की तरह होता है जिसे केवल सुना ही जा सकता है, उस पर प्रतिक्रिया नहीं की जा सकती| ऐसे में बच्चों की शंका का समाधान करना शिक्षक के लिये चुनौती बन जाता है | बच्चों से बार-बार कहे जाने पर भी वे अपनी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं कर पाते | ऐसे में शिक्षक के मन में दुविधा बनी रहती है कि बच्चों को दिया गया कार्य पूर्ण हो पा रहा है या नहीं| यही हाल महाविद्यालयों में पढने वाले बच्चों का है| उन्हें भी पढ़ाया जा रहा ठीक से समझ नहीं
आ रहा | यदि संक्षेप में कहा जाए अॉनलाइन क्लास सिर्फ स्वयं को तसल्ली देना मात्र है कि हमने पढ़ाई कर ली या करवा दी | हकीकत या परिणाम क्या रहेगा ये तो कक्षा में पहुँच कर ही लगेगा |
---©किरण बाला
(चण्डीगढ़
0 टिप्पणियाँ