बढती उम्र में सपनों को पूरा करने का अधिकार नहीं (विपक्ष में)
'बढ़ती उम्र के साथ सपनों को पूरा करने का कोई अधिकार नहीं', मेरी नजर में एकदम अनुचित है | सपनों को देखने की कोई उम्र नहीं होती,सपने सदैव समय और उम्र के दायरे से बाहर होते हैं | समाज में ऐसे बहुत से उदाहरण देखने और सुनने को मिल जाते हैं, जो इस कथन को निराधार बनाते हैं | प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती, इसका एक जीता जागता उदाहरण पंजाब की 'बीबी मानकौर ' हैं जिन्होंने उस उम्र में अपने सपनों को उड़ान दी जिस उम्र में लोग जीवन की उम्मीद तक छोड़ देते हैं |
93 वर्ष की आयु में अपने सपनों का शुभारंभ करने वाली बीबी मान कौर देश की सबसे बुजुर्ग एथलीट मानी जाती हैं | जिन्होंने न सिर्फ देश अपितु विदेशों में भी ख्याति अर्जित की है| वो न केवल दौड़ में हिस्सा लेती हैं अपितु शाट पुट औए जेवलिन थ्रो की प्रतिस्पर्धा में भी भाग लेती हैं | वे 2017 में वर्ल्ड मास्टर गेम्स में देश के लिये चार गोल्ड मेडल तथा 2018 में स्पेन वर्ल्ड मास्टर गेम्स में दो गोल्ड मेडल अर्जित कर चुकी हैं |लगभग 103 साल की उम्र में भी उनका जोश कम नहीं हुआ है | अब भी उनकी निगाहें आगामी वर्ल्ड मास्टर गेम्स पर टिकी हुई हैं | चण्डीगढ़ में हुई मेराथान रेस में उनसे बातचीत करने पर उनके खुशमिजाज़ स्वभाव को जानने को मिला | अपनी दिनचर्या को लेकर वे काफी सचेत रहती हैं | सच भी तो है नियम -संयम, आचार-विचार अनुशासन तथा एकाग्रता न केवल जीवन को सुव्यवस्थित करते हैं अपितु स्वस्थ तन मन का आधार भी बनते हैं |
ऐसे बहुत से कलाकार या रचनाकार भी हैं जिन्होंने अपनी उम्र के ढलते पड़ाव से ही सपनों को पूर्ण करने की दिशा में कदम रखा और सफलता प्राप्त की |
इस तरह के उदाहरण प्राप्त करने कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है |हमारे आस-पास ही ऐसे लोग मिल जाते हैं ,जो हमें प्रेरित करते हैं | सपने चाहे किसी भी उम्र में देखे गए हों उन्हें पूरा करने के लिये समय प्रबंधन की नितान्त आवश्यकता होती है |मात्र सपने देख कर हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहने से कुछ हासिल नहीं होता | बढती उम्र में आरम्भ में समस्याएं तो आती हैं, परिहास का पात्र भी बनना पड़ता है| समाज के कटाक्ष का भी वहन करना पड़ता है पर जैसे जैसे व्यक्ति लक्ष्य की ओर अग्रसर होने लगता है तो उसे सभी का समर्थन भी प्राप्त होता है | प्रथम सीढ़ी पर ही हार मान लेने वाले कभी सपनों को पूर्ण नहीं कर
पाते | परिस्थितियाँ, वक्त, परिजनों और प्रियजनों का सहयोग भी सपनों को पूर्णता की ओर ले जाता है| उम्र के साथ शारीरिक अवस्था में गिरावट जरूर आनी शुरू हो जाती है किंतु इसे कमी के रूप में देखते हुए मनोबल का क्षय उचित नहीं है| इतिहास गवाह है कि मनोबल के कायम रहते बड़े -बड़े उम्रदराज धुरंधर अपना लोहा मनवा चुके हैं | जीवन का अनुभव न केवल उनके लक्ष्य को परिपक्व बनाता है अपितु सभी के लिये प्रेरणा स्त्रोत भी बनता है | संक्षेप में सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूँ कि मौके उम्र या हालात देख कर नहीं आते, जो उन्हें पकड़ लेता है वही कामयाबी की ओर प्रथम कदम रखता है|
कहा भी तो गया है..."जब जागो,तभी सवेरा "|
---©किरण बाला ,चण्डीगढ़
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