बहू बेटी की तरह होती है-किरण बाला

बहू बेटी की तरह होती है(पक्ष में) 
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बहू बेटी की तरह होती है इस कथन से मैं काफी हद तक  सहमत हूँ | बहू को बेटी मानना या ना मानना  परिवेश, मानसिकता और परिस्थिति पर निर्भर करता है |विवाह के पश्चात एक घर की बेटी दूसरे घर की बहू कहलाती है | बड़े चाव व प्रेम भाव से उसका स्वागत किया जाता है ताकि वह किसी भी प्रकार से स्वयं को असहज महसूस न कर सके | उससे यही अपेक्षा की जाती है कि वह उन सभी परम्पराओं और  रीति-रिवाजों का पालन करे जिनका अनुसरण परिवार में होता आया है | 
सास बहू के रिश्ते का तालमेल उनकी सोच ,एक दूसरे के प्रति व्यवहार पर टिका होता है |कई बार हम कही सुनी बातों के आधार पर अपने मन में पहले से ही इस रिश्ते को लेकर गलत धारणा बना लेते हैं कि पता नहीं कैसी सास मिलेगी या फिर कहीं तेज तर्रार बहू न आ जाए | हमारे आस पास की घटनाएँ, घरेलु हिंसा का बढ़ता प्रकोप हमारे  मन-मस्तिष्क पर एक ऐसी छाप छोड़ता है कि हम चाह कर भी इसे निकाल नहीं सकते | ससुराल के नाम पर बेटियों के मन में परिजनो द्वारा सास को लेकर भय उत्पन्न करना बालपन से ही उसके मन में गलत धारणा को जन्म देता है | 
माँ का अपने बच्चों के प्रति लगाव स्वाभाविक 
होता है | उनका सुख ही उसके लिए सर्वोपरि होता है | भावनात्मक रूप से बेटी और बहू में लगाव की बात की जाए तो कहीं न कहीं बेटी के प्रति ही माँ का लगाव ज्यादा होता है | यह सबके साथ होता है | किंतु ऐसे में दोनों के मध्य भेद-भाव रखना उचित नहीं है | बेटी ,माँ और बहू तीनो ही इस तथ्य को गहराई से आत्मसात कर लें तो कहीं भी मनमुटाव की समस्या ही नहीं रह जाएगी | अगर मैं अपनी और अम्मा जी (सासू माँ) की बात कहूं तो हमारा रिश्ता किसी माँ बेटी से कम नहीं है | उनके साथ बिताए वर्षों के दौरान आज तक हमारे मध्य कोई मनमुटाव नहीं हुआ है | कुछ गलत हो जाने पर कभी उनकी गुस्से से कही गई बात को मैंने माँ की ही सीख समझ कर स्वीकार किया है | बड़े केवल हमसे मान-सम्मान की अपेक्षा रखते है और कुछ वक्त जो हम उनके साथ बिता सकें | जितना ख्याल उन्होंने मेरा रखा है, वो एक माँ ही रख सकती है | हम दोनों के मध्य जो सूत्र काम आया वो केवल सोच में परिवर्तन है, एक दूसरे को समझने की प्रक्रिया है| उन्होंने जो कुछ अपनी सास की तकलीफ को सहा उनकी आज़माईश मुझ पर नहीं की बल्कि उस लीक को समाप्त किया जो अब तक चली आ रही थी | ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती, दोनों का सहयोग होना जरूरी है | यदि बहू सास में माँ की छवि देखने लगे और सास बहू में बेटी की तो टकराव की स्थिति उत्पन्न ही नहीं होगी | छोटी-छोटी बातों को अनदेखा करते हुए दोनों को थोड़ा -थोड़ा बदलना होगा | एक दूसरे की भावना का सम्मान करते हुए आपसी समझ बूझ से यदि एक दूसरे का सहयोग किया जाए तो सास बहू के रिश्ते को माँ बेटी के रिश्ते में बदलते देर नहीं लगेगी |


                  ---©किरण बाला 
                        (चण्डीगढ़)


 



 


 


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