बेटी घर की शोभा होती है।बेटी से घर रूपी बगिया महकती है । बेटी घर की शान- मान कहलाती है पर बेटी पराया धन भी होती है उसकी शादी होना भी एक वैवाहिक संस्कार है ।बेटी शादी होकर दूसरे घर की शोभा बढ़ाती है, बेटी दूसरे घर जाकर बहू बन जाती है जो गृह लक्ष्मी कहलाती है ।वह एक नहीं दो घर की शोभा होती है। सभी माँ-बाप अपनी बेटियों को, जिगर की टुकड़ियों को, आंख की पुतलियों को बड़े लाड प्यार से पालती हैं ।उसकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं । पुराने समय में तो बेटियों को पढ़ाते ही नहीं थे, यह सोचकर कि उन्हें तो घर संभालना है लेकिन आज सभी माता-पिता शिक्षित व स्वतंत्र विचारों के हैं । आज हर माता-पिता अपनी बेटियों को बेटों के समान ही शिक्षित कर रहे हैं ताकि वह पढ़ लिखकर आत्मनिर्भर बने और अपने घर को सुख- सुविधा पूर्ण बना सकें ।.वे केवल घर हीं नहीं बल्कि वे सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र में भी योगदान दें ।
आज हम देख रहे हैं कि लड़कियां खेल , संगीत व अन्य सभी कलाओं में निपुण होकर अपने देश का परचम केवल देश में ही नहीं, विदेश में भी फैला रही हैं ।इतनी शिक्षा व स्वतंत्र विचारों के बावजूद भी आज हमारा देश दहेज रूपी अभिशाप से मुक्त नहीं हो पाया है ।आज पढ़ी-लिखी लड़कियां भी , आत्मनिर्भर लड़कियां भी दहेज दानव का शिकार हो रही है और असमय काल के गर्त में समा रही हैं। विज्ञान ने जितनी सुख सुविधाएं की वस्तुएं दीं। उन सुविधाओं ने लड़कियों का जीवन उतना ही कष्टदायक बना दिया। माँ बाप बेटी को पढ़ा लिखा कर संस्कारित कर शादी कर देते हैं लेकिन ससुराल वाले दहेज( कार ,बाइक,फ्लैट)में अपनी माँग पूरी न होने पर बहू को यातना का शिकार बना देते हैं और एक दिन बेटी दहेज की आग में अपना जीवन ध्वस्त कर देती है। हर माँ बाप लड़की का पिता है अगर वह चाहता है कि उसकी बेटी को बहूं बनाकर नहीं बल्कि बेटी जैसा ही सम्मान् मिले। वह बेटी देता है तो बेटी लेता भी है। वह किसी की बेटी को अपने घर बहू बना कर लाता भी है तो उसका फर्ज है कि वह दूसरी की बेटी को अपनी बेटी जैसा सम्मान दे।
आज हमारे समाज में काफी बदलाव आया है । पर्दा प्रथा हमारे समाज से बिल्कुल खत्म हो गया है। संयुक्त परिवार नहीं रहे अब तो एकल परिवार हैं ,हमदो हमारे दो। माता पिता जब सास-ससुर बनते हैं तो वे भी अपनी बहू को बेटी जैसा दर्जा दे रहे हैं। प्रायः लड़कियां (बहुएँ )पढ़ी- लिखी है ,नौकरी कर रही हैं और उन्हें हर तरह सुविधाएँ हैं पर वे लड़कियाँ अपने सास-ससुर को अपने साथ ही रखना नहीं चाहती और न वह सम्मान देती है जो अपने माता- पिता को देती हैं। अगर पुत्रवधू समझदार है ,संस्कारी है तो वह अपने सास-ससुर को सम्मान देती है।
बहुएँ इतना तो जानती हैं कि शादी के बाद ससुराल ही उनका घर होता है जिसे उनके ससुर ने अपने श्रम से सींचकर बनाया है, और उनके ससुर भी चाहते हैं कि वह अपने घर में चैन की साँस ले सकें। लेकिन आज हम देख रहे हैं उच्च शिक्षित माँ -बाप आर्थिक रूप से सम्पन्न होने पर भी वृद्धावस्था में भेज दिए जाते हैं। क्योंकि बेटा जो उनका अपना होता है , वह अपनी पत्नी के कारण विवश हो जाता है और माँ-बाप को साथ नहीं रख पाता अतः वृद्ध आश्रम की राह दिखा देता है। आजकल एक या दो बेटे होते हैं। अतः सास - ससुर बहू को बेटी जैसा ही प्यार देते हैं , घर के काम के लिए नौकर भी रख देते हैं अगर बहू पढ़ना चाहती हैं तो सास- ससुर पढ़ने के लिए भी प्रेरित करते हैं लेकिन फिर भी अपनी वृद्धावस्था में भी असहाय जैसे हो जाते हैं क्योंकि प्रायः जो बेटी ससुराल आकर अपने माता-पिता के बारे में सोचती है उनकी सुख सुविधा की चिंता करती है। सास ससुर कितने भी योग्य हो ,वे उनकी योग्यता को, उनकी प्रतिष्ठा को और उनकी भावनाओं को एक तरफ कर देती है और यही कारण है कि आज इतनी संख्या में वृद्ध आश्रम हैं । अगर पुत्र वधू समझदार है तो घर स्वर्ग बन जाता है नहीं तो आप कितना भी बहू को बेटी समझ कर प्यार करेंगे ,आपकी अच्छाइयों को अनदेखा कर दिया जायेगा और आपको अपमान के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा । ये तथ्य मैं बड़े शहरों के दे रही हूँ ।.छोटे शहरों में बहू को बेटी जैसा प्यार दिया जाता है तो वे अपने सास- ससुर का सम्मान करती हैं और उनके.बुढापे का सहारा बनकर सेवा करती हैं क्यों कि वे बहू के फर्ज को भारतीय स्ंस्कार को समझती हैं।
1- जहाँ बहुओं को बेटी तुल्य समझा गया।उन्हें अत्यधिक स्वतन्त्रता दी.गई। वहीं माँ-बाप को कष्टों का सामना करना पड़ा।
2- हर पुत्रवधू पहले बेटी होती है ।आज
शिक्षित होने पर भी अपने सास-ससुर के प्रति
अपनतव की भावना नहीं. रख पाती।
बेटी ही बहू होती है पर बाबुल की देहरी लांघते ही बेटी अपनी मासूमियत वहीं छोड़ आती हैं। बहू बेटी की तरह होती है लेकिन बहुओं को भी बेटी बनकर सास- ससुर की भावनाओं को समझना होगा।
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