रिश्तो की सुगंध में भीगा नारी का जीवन,, जिसमें कई पड़ाव आते हैं मासूम सी बेटी दुलारी सी बहन, ननंद जिठानी देवरानी सास ममतामई मां इन सब रिश्तो को सहेजना औरत के लिए बहुत बड़ी बात होती है अतः बहू बेटी की तरह होती है तब सिक्के के दोनों पहलू देखने चाहिए बहू बेटी की तरह होती है। यह कथन काफी हद तक अब सत्य साबित हो रहा है क्योंकि अब नारी जीवन मैं शिक्षा और उसके अधिकारों पर ज्यादा जोर दिखाया जा रहा है यह एक अच्छी बात है नारी पहले से अधिक जागरूक हुई है यह भी सत्य है बहु को बेटी मानना परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है।
यदि बहू को बेटी की तरह ही रखा जाए और सास भी मां बन कर रहे तो फिर परिवार की नींव मजबूत रहती है इस रिश्ते में दोनों पक्षों का भावनात्मक समर्पण जरूरी है क्योंकि बेटी भी अपना घर छोड़कर दूसरे घर आती है उसके लिए नई परिस्थिति नए रिश्तों से सामंजस्य बनाना चुनौतीपूर्ण रहता है अतः सम्मान पाने का अब उसे भी रहता है सर्वप्रथम बेटी जब बहू बनकर आती है तो तो परिवार में उसे सर्वप्रथम बेटी का ही ओहदा मिलना चाहिए सास ससुर को भी अपने समय का गुणगान ना गाते हुए नए समय के साथ चलना चाहिए। बहू को खुद की बेटी से तुलना ना करें सभी की अपनी अलग अलग क्षमता होती है नए परिवेश में आकर यदि बहू को कुछ काम ना आए तो उसे प्यार से समझा सकते हैं बहू के मायके पक्ष से भी अच्छा व्यवहार रखना चाहिए दिल खोलकर बहू का बेटी जैसा व्यवहार करें।
अब शादी करके आई बेटियां भी यह न सोचे कि पति उनकी हर बात सुने और माने जरूरी नहीं जैसा आप सोचती हैं वैसा ही परिवार वाले भी सोचें। एक दूसरे की कमियां ना निकालते हुए परिवार में एक दूसरे की खूबियों से प्यार करें मेरा अनुभव है की पति पत्नी में सामंजस्य हो तो बहुत हद तक बहू बेटी बन सकती है सास और बहू में सामंजस्य हो तो भी परिवार की बुनियाद मजबूत हो सकती है हर मां को अपनी बेटी को यही उपदेश देना चाहिए कि वह जहां भी जाए उस घर को स्वर्ग बना दे कोई भी मां जैसी बहु चाहती है वह अपनी बेटी को भी वैसे ही संस्कार दे जैसी वह बहू चाहती है। अतः दोनों में सामंजस्य बहुत जरूरी है
क्योंकि सास भी कभी बहू थी।
नीता चतुर्वेदी,विदिशा
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