स्वाति गाँव में ही पली-बड़ी थी पढ़ने में होशियार थी। प्राथमिक शिक्षा स्कूल से लेकर काॅलेज तक गाँव के विद्यालय से ही ग्रहण की थी। छोटी थी तो पिताजी साइकिल से स्कूल छोड़ आते व लेने जाते। बड़ी हुई तो सहेलियों के साथ कभी रिक्शा पर कभी पैदल पढ़ने चली जाती थी। धीरे-धीरे अब उसने साइकिल चलाना सीख लिया था तो दो किलोमीटर तक आराम से सब सहेलियों के साथ आने -जाने लगी। काॅलेज करने के बाद गाँव में करने को कुछ था नहीं स्वाति अभी और पढ़ना चाहती थी कि शहर में जाकर कोई अच्छा सा कोर्स कर ले और अपने पैरों पर खड़ी होकर अच्छी सी नौकरी कर ले।
इसके लिए वो अक्सर नैट से या समाचार पत्र के माध्यम से अपनी हाॅबी का अच्छा सा कोर्स देखती रहती थी ।स्वाति की रुचि टीचिंग,फैशन डिजा़इनर एवं ब्यूटीशियन कोर्स में ज्यादा थी और एक जगह उसने फार्म भरा तो इंस्टीटयूट में उसके आवेदन को स्वीकार कर लिया और उसने शहर जाने का फैसला लिया।
स्वाति गाँव से शहर चली गई और वहीं पर उसने एक रूम किराए पर लेकर बस द्वारा आने-जाने लगी। 'बस स्टैंड' पर उसकी जान-पहचान अपनी ही तरह के लोगों से होती रहती थी जो लोग भी अन्य जगहों से पढ़ने या कोर्स करने आए हैं।
बस स्टैंड पर उसकी दोस्ती बहुत लोगों से है गई और बस में सफर करना स्वाति को अच्छा लगता था। कुछ लड़कियों के तो उसकी बहुत अच्छी दोस्त बन गई अब वे एक-दूसरे का इंतजार करती और एक साथ आती-जाती थी। स्वाति ने भी अपना रूम वहीं शिफ्ट कर लिया था और साथ में दो-तीन रूममेट रहती थी और वक्त बढ़िया बीत रहा था। वे सब अपने अनुभव भी एक दूसरे से शेयर करती रहती थी जिससे उन्हें किसे करने से कैरियर ज्यादा ब्राइट हो इसके लिए मदद मिलती थी।
शहर में रहकर स्वाति ने कम्प्यूटर कोर्स और बहुत से कोर्स कर लिए थे और जिनके डिप्लोमा भी इंस्टीयूट से उसे मिल गए थे। स्वाति अपने कोर्स कम्पलीट करके वापस गाँव अपने घर आ गई थी यहीं से वो नौकरी की वैकेंसी ढूँढकर आवेदन भेजती रहती थी। स्वाति को एक फर्म में फैशन डिजा़इनर के लिए सलैक्ट कर लिया था और नौकरी के साथ उसके आवास का भी प्रबंध कम्पनी की तरफ से था उस कम्पनी की कईं शहरों में शाखा थी।
स्वाति ने नौकरी ज्वाइन कर ली थी पर 'बस स्टैंड' के उस अनुभव को वो कभी नहीं भूल सकती थी जिसने उसे समय पर पहुँचाना और इतनी अच्छी हमसफर दोस्तों सखियोंं से मिलाया जिसकी वजह से उसको अकेलेपन से बोरियत से मुक्त कराके परिवार सा माहौल दिया।आॅफिस तो अब भी स्वाति बस से ही जाती है उसके अपने आॅफिस की बस कंपनी में उन सभी कार्यरत स्टाफ को लाती व छोड़ती है।'बस स्टैंड' अब उसके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है और बस स्टैंड के अनुभव उसके मन मस्तिष्क को तरो-ताजा़ कर देते हैं।
©️मौलिक
रीता जयहिन्द
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