बस स्‍टैन्‍ड- सुरेन्‍द्र

 


आज सोमवार होने की वजय से बस स्टैंड पर और दिनों से ज़्यादा भीड़ थी. जो भी बस आ रही थी तभी भर जाती थी. रोहन का आज इंटरव्यू था और उसे चिंता हो रही थी कि वह समय पर पहुँच पाएगा या नहीं. रोहन कुछ समझ नहीं पा रहा था.तभी उसके पास एक लड़की आई और बोली "एक्सक्यूज़ मी.. क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकती हूँ "
रोहन ने नज़र उठाकर देखा कि एक बीस से बाईस साल की युवती उससे बात कर रही है. देखने में वह साफ त्वचा की  खूबसूरत लड़की है. उसकी आवाज़ से रोहन का ध्यान टूटा "जी आप कौन हो और मेरी मदद क्यों करना चाहती हो "? "
"मेरा नाम उदिति है और मैं एक NGO के लिए काम कर रही हूँ. हमारा NGO हरियाणा के सभी बसस्टैंडों पर एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है. इसी सिलसिले में मैं सर्वे कर रही थी कि आपको परेशान देखा तो मदद के लिए आ गयी "
"जी मेरा नाम रोहन है, आपका बहुत धन्यवाद. दरअसल आज मेरा गुरुग्राम में इंटरव्यू है और मुझे लग रहा है कि मैं समय पर नहीं पहुँच पाऊँगा. अब आप बताओ कि आप मेरी मदद कैंसे कर पाओगी "? 
"रोहन जी अगर कोई इंसान सच्ची नियत से किसी की मदद करना ठान ले तो कुछ भी मुश्किल नहीं है.वहाँ पार्किंग में हमारे NGO की गाड़ी पार्क है. यहाँ झज्जर के सर्वे के बाद हमें गुरुग्राम ही जाना है हम आपको अपनी गाड़ी में छोड़ देंगे. "
"जी मैं आपका ये एहसान कभी नहीं भूलूंगा "
"रोहन जी ये तो मानवता है. कभी आपको मौका मिले तो आप भी किसी की मदद कर देना"
उस दिन रोहन सही समय पर इंटरव्यू के लिए पहुँच गया और सेलेक्ट हो गया. रोहन के लिए बस स्टैंड का वाकया कभी ना भूलने वाला था. 



स्वरचित मौलिक रचना. 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर (हरियाणा 



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