" मम्मी भूख लगी है और प्यास भी, कुछ खाने को दो ना ..!" नन्हा अक्षत बार बार माँ के आँचल को पकड कर खिंच रहा था. !
" बस बेटा थोड़ी देर और.." माँ ये आश्वासन बार बार देकर थक गई थी ! नन्ही आर्या गोद में कुलबुलाते कुलबुलाते सो गई थी।
" पापा बहुत गर्मी लग रही है, कहीं बैठने की जगह भी नहीं है, हम कब तक रहेंगे यहाँ घर चलिए ना। अक्षत से बड़ा भाई अशेष बोल पड़ा ,जो हमेशा शांत रहा करता, इतना छोटा बच्चा कभी गलती से भी गलती नहीं करता था.। आज वो भी तंग आ गया था। छोटे से बैग पर बैठे बैठे ऊब गया था l
" कहा था मैंने हम बस से नहीं चलेंगे, लेकिन आप तो सुनते नहीं किसी की..उस पर इतनी गर्मी, तपती दोपहर में खुले बस स्टैंड पर बैठना, अब लाइये खाना पानी, मैंने जो रखा था वो सब समाप्त हो चुका है ."! वो एक ही साँस में बोल गई l " अरे शिखा मुझे क्या पता था कि हम रैली के कारण यहाँ फंस जाएंगे, रैली नहीं होती तो सुबह को ही घर पहुँच जाते न..? " बच्चों के पापा को अफसोस हो रहा था लेकिन अब क्या हो सकता है!
शिखा को भी अपने पति से इस तरह बात करना अच्छा नहीं लगा किन्तु बच्चों को परेशान देखा और अभी तक सुबह से दोपहर भी उतरने को आई किन्तु घर जाने का उपाय नहीं दिख रहा था। इसलिए अब धैर्य भी साथ छोड़ रहा था, ऐसी जगह फंसे थे जहां से न जाने कब निकलना हो...!
माँ ने बच्चों को पुचकारते हुए समझाया बच्चों थोड़ी देर और इंतज़ार कर लो, बस थोड़ी देर में हम सब चलेंगे। ऐसा नहीं था कि वहाँ यही एक परिवार था कई लोग थे जो इन्हीं की तरह परेशान थे। अचानक रैली मे हुए दंगा ने सबको परेशान कर दिया था इतना बड़ा बस स्टैंड था किंतु छोटा लग रहा था हर जगह की बस और उसके सवार सब, जो बस यहाँ नहीं रुकती थी, वो भी खड़ी थी, इतनी भीड़ बढ़ गई थी कि सबका दम घुट रहा था।
अचानक गोद में सोई आस्था जग गई, चारो तरफ़ देखी और मुह बनाकर रोने लगी। आधी रात से उसे गोद में लेकर बैठी शिखा की कमर ने जवाब दे दिया किन्तु करे तो क्या करे ! आस्था ने रोना शुरू किया तो चुप होने का नाम ही न ले, हे भगवान तुम ही इस मुश्किल से निकालो, शाम हो गई नन्ही बच्ची रोते रोते सो गई, शायद भीड़ देख के डर गई थी माँ का दूध भी नहीं पी रही थी, तभी सबमें खुशी लहर दौड़ गई पता चला सारी बसें अपने गंतव्य को जाएंगी।
इंदु उपाध्याय पटना
0 टिप्पणियाँ