" दादी, दादी मुझे अम्मा के पास जाना है." नन्ही गुड़िया दादी की गोद में मचल रही थी! दादी उसको गोद में लिए कहानी सुनाने का प्रयास कर रही थी, ताकि वो सो जाए। सुबह से कई बार अम्मा के पास जाने को रट लगा चुकी थी, शाम को तो ऐसा रोने लगी, ज़िद पकड़ ली कि मुझे अम्मा के पास ही जाना है। गुड़िया के बिना दादी नहीं रह पाती,और गुड़िया भी दादी के बिना नहीं रह सकती l दादी ने उसे गंगा मइया से मनौती करके माँगा था कि " हे गंगा मइया मुझे एक कानी भी पोती दीजिए बाकी दीजिए." बस क्या था गंगा मइया ने दादी की सुन ली और प्यारी गुड़िया का जन्म हुआ दादी के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। जिस दिन गुड़िया का जन्म हुआ उसी दिन उसके चाचु की नौकरी लगी। इसलिए दादी और भी उसे कलेजे से लगा के रखती, क्योंकि इस घर में इतने बड़े पद की नौकरी किसी की नहीं थी।" दादी बोलो ना, मुझे अम्मा के पास जाना है" गुड़िया की बड़ी - बड़ी पनीली आँखों में आँसू देख दादी तड़प उठी " मेरी लाडो, मेरा कलेजा
अभी रात को कैसे जाएगी कल भेज दूँगी, मेरा बच्चा" दादी प्यार करते हुए गुड़िया को बोली, गुड़िया मान गई, ना जाने कब नींद की गोद में समा गई...। गुड़िया की अम्मा नानी के घर गई थी, वो सुबह पिताजी के साथ अम्मा के पास चल दी। जब उसकी अम्मा नानी के घर जाती तो वो सुबह नानी के घर और शाम को दादी घर जाने कि जिद करती, बस क्या था पूरा करना ही था। दादी और नानी घर के बीच पिताजी का स्कूल पड़ता था, वहाँ के हेडमास्टर साहब इतनी करारी, कुरकुरी भिंडी भुजिया बनाते थे कि सच बोलूँ तो गुड़िया उसी भुजिया के लिए ही
आने - जाने की ज़िद करती। वो बोली "बाबूजी पहले स्कूल चलिए ", "नहीं चुप चाप माँ के पास चलो" बाबूजी बोले , वो फिर रुआँसी हो गई," बाबूजी स्कूल वो मास्टर साहब और उनकी भिंडी की भुजिया " वो बोले" फिर तुम शाम को जाओगी अम्मा के पास." .".हाँ मंजूर.." . वो ख़ुश हो गई।
इंदु उपाध्याय पटना
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