भिंडी की भुजिया-ज्योति

आज मधु को आज उठने में जरा देर हो गई,अब क्या करे और क्या नहीं परेशान सी, भागी सी जल्दी जल्दी काम करने लगी,बाहर बाऊजी सोफ़े पर बैठे सब देख रहे थे उन्हें लगा आज बहु को देर हो गयी और अब इसे विद्यालय के लिए भी निकलना है।
"लाओ बहु मैं तुम्हारी कुछ मदद कर देता हूँ"ऐसा कहते हुए भिंडी निकल कर चौक में आकर काटने लगे।
मधु को थोड़ी राहत मिली वह बेटे को उठा कर तैयार करने लगी...जब सब काम निपट गया तो वह रसोई में गई,देख कर बहुत सुकून मिला,बाऊजी ने तो भिंडी की भुजिया बना कर टिफ़िन में भी डाल दी थी।
जल्दी जल्दी तैयार हो कर अपना टिफ़िन उठा कर चलने लगी तो बाऊजी ने धीरे से कहा ..बेटा वहाँ और भी लोग बैठते हैं क्या तुम्हारे साथ खाने के समय?"
मधु ने कहा नहीं नहीं बाऊजी मैं अकेले ही करती हूं लंच।
मधु स्कूल पहुँच गई,जैसे ही लंच टाइम हुआ बच्चों के सामने अपनी कुर्सी पर बैठ कर उसने भी लंच खोला,देखा तो ऊपर दो रोटियां रखी थी और उनके बीच में अचार के टुकड़े,दूसरे डिब्बे में देखा तो दही में नमक मिर्च मिला हुआ...
मधु सोचने लगी ये दही तो बाऊजी के लिए था उनके नकली दांतों से कुछ सख़्त खाया नहीं जाता,और फिर बाऊजी ने तो भिंडी की भुजिया बनाई थी वो क्यों नहीं डाली।
फिर सोचा भूल गए होंगे।
जैसे ही ढक्कन उठा कर लगाने लगी तो एक कागज़ के टुकड़ा उससे निकल कर नीचे गिरा,मधु ने कागज उठा कर खोला तो पढ़कर आँखे सजल हो गयी...लिखा था..बेटा मुझे माफ़ कर देना भिण्डी की भुजिया चढ़ा कर मैं भूल गया था अखबार पढ़ने में इतना मग्न हो गया कि भिंडी हरी की जगह काली हो गयी, जली हुई भुजिया तुम्हें कैसे देता ..तुमने जो मेरे लिए दही रखा था वही डाल दिया है....पर तुम चिंता मत करना मैं कोई और सब्जी बना कर खा लूँगा"।


 


ज्योति शर्मा जयपुर



 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ