"वियान खाना तैयार है आकर खाना खा लो "
"मॉम आज खाने में क्या बना है "वियान ने अपनी माँ सीमा से पूछा.
"दाल बनी है.. बेटा "
"ये क्या मॉम आपने आज भी भिंडी की भुजिया नहीं बनाई जबकि मैं कितने दिन से कह रहा हूँ. आप मेरी बात कभी नहीं मानते "
"अच्छा बेटा.. आज खाना खा लो कल पक्का बना दूँगी "
"नहीं मॉम आज मैं मैग्गी खा लूंगा लेकिन दाल नहीं खाऊंगा. तभी कल आपको भिंडी की भुजिया बनाना ध्यान रहेगा. "
वियान और उसकी माँ में सब्जी को लेकर बहस होती रही लेकिन कोई हल ना निकला.
तभी बाहर से वियान के पापा श्रीभगवान आते दिखायी दिए.
"वियान की माँ ये लो वियान को भिंडी की भुजिया प्लेट में डाल कर दो "
वियान बोला "पापा आपको ध्यान था कि मुझे भिंडी की भुजिया पसंद है "
"बेटा तेरा बाप हूँ तेरी हर पसंद - नापसंद का पता है".
अपने पापा का जवाब सुनकर वियान कुछ ना कह सका. सीमा पिता पुत्र की भिंडी -भुजिया पर वार्ता सुनकर मुस्कुरा रही थी.
स्वरचित मौलिक रचना.
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
झज्जर (हरियाणा )
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