चपलू की मौसी-किरण बाला


फोन की घंटी देख मैंने
ज्यों ही फोन उठाया
देख चप्लू की मौसी का नम्बर 
दिमाग मेरा चकराया
दिमाग मेरा चकराया सोचा 
आई कैसी आफत भारी
भरी दुपहरी में अब तो समझो
नींद उड़ गई हमारी
एक घंटे से पहले भला
ये कहाँ बतियाएंगी
इत-उत की लाग लपेट में 
व्यर्थ मुझे उलझाएंगी
उठाया फोन तो उधर से
आवाज चप्लू की आई
जाने क्या हुआ मौसी को
आफत बड़ी बुलाई
आफत बड़ी बुलाई 
जल्दी से पहुँची उसके घर
हाथ पेट पर रखे मौसी
बौराई घूमे इधर-उधर
हाय-हाय की रट से 
उनका गूंज रहा था घर
देख हालत ऐसी उनकी
घर के सभी थे दंग 
घर के सभी थे दंग 
कहा तुरंत डॉक्टर बुलवाओ
बोली मौसी जल्दी से तब
अरे! लॉकडाउन खुलवाओ
बातें यहाँ-वहाँ की इक्ट्ठा 
हुई बड़े दिनों से सारी
बातों की खिचड़ी से हुआ
पेट में अफारा भारी
पेट में अफारा भारी 
मुझको बाहर तुम ले जाओ
नहीं तो बस दो चार को
बुला घर तुम लाओ
जब तक ना कह लू मन की
पेट ना खाली होए
बंद है सब ताक-झाँक भी
किस विध जीना होए
सिर धुनकर हम फिर 
वापस घर को आए
चपलू की मौसी से भैया
राम ही जान बचाए


         -----©किरण बाला 
                (चण्डीगढ़)



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