चपूल की मौसी-इंदु

पलू की मौसी को नौकरी का शौक था,बाकी पढ़ाई लिखाई में लगता नहीं मन था,दो बार दस और तीन बार बारहवी फेल का अंक पत्र उनके पास था, मुखड़ा उनका फैशन की लगभग दुकान था। लगतीं है अनुष्का सी , ऐसा उनका अनुमान था, थोड़ी वो पतली है इनसे कद में थोड़ी ऊँची बाकी सब समान था, खैर चपलू. की मौसी ने नौकरी का भर दिया फारम था, दस दिन में आ गया साक्षात्कार का फरमान था,मौसी के जैसा  नहीं कोई समझदार था, बात को कैसे घुमाते हैं उनके बाये हाथ का खेल था, साक्षात्कार के दिन मौसी से पूछा गया एक सवाल था , "आपने क्यों खाली छोड़ दिया बाप का स्थान " चपलू की मौसी को याद आया उस दिन, लिपस्टिक लगाने में छुटा वो स्थान था , तापक से बोली मौसी - "हुजूर नौकरी तो मुझे करनी है ना कि बाप को फिर बाप के नाम का यहाँ क्या क्या काम था .?" बाप का क्या है , वक़्त पड़ने पर तो गथा भी बाप बन सकता है, अगर आपने दी नौकरी तो, आप को भी मैं मान सकती हूँ. बाप के खाली स्थान को आपके नाम से भर सकती हूं..।



इंदु उपाध्याय, पटना



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