जानने से जो मिटते भरम,
जानते तो तुम्हें भी थे हम।
ये नहीं बैंक खाता लिखा,
जांच में कुछ मिले, खाम कम।
दौड़ते, भागते है कदम,
है सड़क की सदा चाल सम।
एक चाभी खरीदी ऐसी,
जो खुले ताले निकले वो बम।
कर दिए तूने जो गैर सब,
नाम है वो हमारे सितम।
ताप से गिर के पूछे समां,
ये नदी क्यों गई अब के जम।
पहले तो कुछ नहीं थी समझ,
आ गई फिर अचानक शरम।
–रजनी मलिक
चंडीगढ़
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