गुलाब- अमिता

गुलाब ये पुष्पो का राजा
बागवान के दिल पर बैठा
प्रशंसा में वाणी पर सजा
जीवन तार सज्ज कर देता


रूहानी गुलाब जो बने
सत्वो को धारण कर ले
जिन्दगी की डगर चले
मस्ती में हो झूलते जाये


काँटो के बीच पलते
गुलाब फिर भी महके
मन से खुशी दान करे
ये महिमा समाई इसमें


देकर भी श्रांत नहीं होते
बिखरी पंखुडी भी भाये
रंग बिरंगे भिन्न छटाओं में
ऐसे बगिया सुन्दर सजाये


गुलाब विभिन्न  रूपों में 
गुलदावली राज जाने
सत्कर्मो का संदेश देते 
सभी वेदना हरण करते 
गुलाब 
सृष्टि को तृप्त करते जाते


अमिता मराठे 
इन्दौर 
मौलिक


 



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