गुलाब-ज्योति

 


बोला वो गेंदा चम्पा से,सुनो पते की बात
गुलाब सभी से सुंदर है अपनी क्या औकात,
बोली चम्पा बात सही है, लेकिन सुनो हमारी,
वो काँटो में रहता हरदम, हम रहते फुलवारी
उसने दर्द सहे  बचपन से कितने सहे झमेले,
ले जाता है तोड के माली बेचे भर भर ठेले
कहे कुमुदिनी लेकिन फिर भी वो सबका प्यारा है,
कितना सुंदर लगता है देखो,दिखता भी न्यारा है
बोली चम्पा अरे कुमुदिनी,इसका भी मोल चुकाया
ले जाते है पागल प्रेमी, पत्ती पत्ती बिखराया
बोली जूही सच कहते हैं चम्पा और चमेली
सुंदर है वो उसी से सजती दुल्हन नई नवेली
सुंदरता का यही दर्द तो उसको भी चुभता है
होता है बेबस कितना जब बालों में गूंथता है
सबके मन को हर्षित करता कब वो इतराता है
काँटो के दामन में रह कर खुशियां बिखराता है।


 


ज्योति शर्मा जयपुर


 



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