ये जो उम्र है ना पचास की,
मुश्किल तो है पर लाजवाब भी,
वो छोटों की सलाहें,
और बड़ों की सीखे,
पिसती तो है पचास की,
न मानो तो छोटे नाराज
ना चलो तो बड़े नाराज,
मुश्किल तो है पर लाजवाब भी,
ना बचपना जा रहा,
न बुढ़ापा आ रहा,
बड़े कह रहे बच्चे हो अभी,
ऐसे कैसे थक रहे,
बच्चे कहते बूढ़े हो,
ऐसे कैसे दौड़ रहे ,
मुश्किल तो है पर लाजवाब भी,
ये जो तजुर्बा है ना पचास का,
बड़ा नटखट सा है ,
चले थे देने बड़ों को सलाह,
जवाब मिला धूप में पके तो हैं पर पूरे नहीं ,
जो देने चले छोटों को तो उन्हें
तो इनकी जरूरत ही नहीं,
ना इधर के है
ना उधर के हैं ,
अभी तो बस पचास के हैं।
आरती शर्मा देहरादून
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