हाथों की सत्ता -निशा नंदिनी

ये हाथों की कालिख तो
पौरुष की निशानी है। 
पके है श्रम की आग से ये 
निर्माण की हर प्रक्रिया 
इन्होंने जानी है। 


इन हाथों की लकीरों में 
छिपा है विश्व का मानचित्र 
करते ही इनका उपयोग 
दिखाई देता है सचित्र 
अगर है सच्ची ताकत
तो बदल सकते हो जहां को 
पर दुनिया बदलने से पहले 
खुद को गड़ना होगा 
दो अस्त्रों का लेकर सहारा 
परोकार की पवित्र भूमि पर
पदार्पण करना होगा। 


हाथों की चंद लकीरों में 
जीवन बिखरा पड़ा है
कर्म से बनती बिगड़ती 
ये मासूम सी हस्त रेखाएं
हर मोड़ पर देती संतुलन 
इसकी नाजुक सी शिराएं
जोड़ कर दोनों हाथों को
नमस्कार हो जाता है
इस मुद्रा के आगे तो विश्व  नतमस्तक हो जाता है। 


इन हाथों की सत्ता पर
कभी शक न करना
लाख लगे इन पर कालिख 
पर दिल पर कभी अपने 
ये कालिख न लगने देना।


निशा नंदिनी 
तिनसुकिया, असम


 



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