कुछ विद्यार्थी खड़े थे अपनी - अपनी बातों पर अड़े थे ! एक ने कहा, क्या बताऊँ हिंदी की मैडम समस्या बड़ी. हैं।दूसरे ने कहा, अरे क्या बताऊँ यार वो तो शुद्धीकरण की लड़ी हैं .! तीसरा बोला क्या कहूँ मैं, हिंदी सुधारने को वो मेरे पीछे हाथ धोकर पडी हैं! हाँ दोस्त मानो जैसे वो तो शब्दों को शुद्ध करने वाली हथकड़ी है..! सच ये मैडम न समस्या न मुसीबत है, ये तो अनुशासन की घड़ी हैं! क्योंकि जब मैडम कक्षा में आती हैं, लगता है जैसे कुर्सी से बंध जाती हैं.! जाने का नाम नहीं लेती हैं.!
तब अपने आप में टंटा हो जाता है, जैसे पल - पल घंटा हो जाता है..! क्या बताऊं बोलते वक़्त सोच में पड़ जाता हूँ ऐसा लगता है, गर्दन में शब्दों का कोई फंदा लटक जाता है..! एक दिन की बात है, जब देर से आया स्कूल में हिम्मत जुटाने लगा जाने को क्लास में..! मैडम डांटी ना बोली अपनी बड़ी - बड़ी आँखे बस ने खोली, ! जैसे गले में मेरे किसी ने मारी हो गोली l, और रुक गई बोली ..! मैं तो ऐसा घबराया की थोड़ा सकपकाया थोड़ा सा हकलाया,! मैं मैं मैडम जी.. आज माफ़ कर दीजिए देर गया, चाय गरम था बिस्कुट नरम था, खाने में मुँह जल गई तभी बस निकल.... मेरी बात अभी पूरी भी नहीं हुई कि मैडम... का पारा बहुते गरम था.. डपट कर बोलीं, शर्म करो... कितनी अशुद्धियां है तुम्हारे उच्चारण में, देर हो गई , चाय गरम थी, मुँह जल गया चलो अब सबको सौ- सौ बार लिखो क्या बताऊँ कि फिर क्या मेरा हाल था...!
इंदु उपाध्याय पटना
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