मां घर पर नहीं थी तब मैंने रसोई में कुछ पकाने का सोचा किसी के रोके टोके जाने का डर भी नहीं था। उस समय में पांचवी क्लास में थी। मुझे याद है हमारे यहां गैस चूल्हा मिट्टी के तेल वाला स्टोर, और बुरादे की सिगड़ी जिसमें लकड़ी का बारीक बुरादा भरकर जलाया जाता था। मैंने सिगड़ी पर अपना हाथ आजमाने की कोशिश की सिगड़ी नुमा चूल्हे में पहले लकड़ी का बारीक बुरादा भरना होता है फिर उससे नीचे से जलाया जाता है जो मुझे भरना आता नहीं था लेकिन मैंने कोशिश की। और बड़े तसल्ली पूर्वक मैंने अपने मन में सोच लिया कि मां भी ऐसा ही करती है और मैंने उसमें मिट्टी का तेल डालकर माचिस की तीली से सिगड़ी को जला लिया । माचिस की तीली डालते ही सिगड़ी नुमा चूल्हे ने एकदम ही आग पकड़ ली और चूल्हा धू-धू करके जलने लगा मैं घबराई और मैंने एक बाल्टी पानी उसके ऊपर डाल दिया और और जल्दी ही सारी सफाई कर फिर गैस चूल्हे में ही जैसे तैसे रोटियां बनाई लेकिन एक बात है मां को देखकर ही मैंने बिल्कुल गोल रोटियां बनाई थी और फिर मां के आने पर पूरा किस्सा सुनाया डांट और तारीफ दोनों ही सुनने को मिली । इस तरह रसोई में मेरा पहले कदम का अनुभव रहा कुछ खट्टा कुछ मीठा।
नीता चतुर्वेदी
विदिशा (म. प्र.)
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