जब मैंने पहली बार रसोई घर में प्रवेश किया-किरण बाला

 
हमारे जीवन में कुछ पल ऐसे होते हैं जो कभी भुलाए नहीं जा सकते | उनकी यादें सदैव मन को प्रफुल्लित करती रहती हैं | बात उन दिनों की है जब गाँव में हमारा मकान बन रहा था | उस समय मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी | लगभग पूरा मकान तो बन चुका था बस रसोई घर में कुछ काम शेष था | खाना बनाने के लिये भंडार कक्ष का इस्तेमाल किया जा रहा था | एक दिन मुझे न जाने क्या धुन सवार हुई कि आज भिंडी की सब्जी मैं बनाउंगी | इससे पहले रसोई में  मैंने कभी काम नहीं किया था | मैं इतना उत्साहित थी कि सब्जी बनाने जा रही हूँ | ये बात अलग है कि मैंने कभी सब्जी नहीं बनाई थी पर माँ को बनाते हुए देखा था | अब ठान लिया तो ठान लिया ,पूरा तो करना ही है  यह सोचकर किसी योद्घा की तरह पहुँच गई रण क्षेत्र में | पहली बार किया गया काम प्रत्येक इंसान जी जान से करता है | मेरा उत्साह देखते ही बनता था | जरूरत का सारा सामान एकत्रित करने के बाद मैंने सब्जी बनाना आरम्भ किया | कमरा पूरी तरह से बंद था | वहाँ पर कोई रोशनदान या खिड़की नहीं थी | गर्मियों के दिन थे, हवा का नामोनिशान तक नहीं था | तभी मेरे पापा जो किसी काम से वहाँ आए और मुझे काम करते देखकर हैरान हो गये | कहा कुछ नहीं, बस चुपचाप चले गए | कुछ देर बाद वापस आए तो उनके हाथ में टेबल फैन था | उन्होंने उसे चला दिया, चलाते भी क्यों न उनकी प्यारी बिटिया खाना जो बना रही थी | मेरे पापा अत्यधिक संवेदनशील थे | मेरे प्रति तो कुछ ज्यादा ही | 
जितना मुझे आता था उस तरीके से मैंने सब्जी बना ली | मैं उसे इस प्रकार निहार रही थी जैसे कोई रचनाकार अपनी प्रथम कृति को देखकर भाव विभोर हो जाता है | खूब सारे प्याज टमाटर में भुनी भिण्डी  लाल पीले और हरे रंगों में बेहद आकर्षक लग रही थी | खाने में कैसी होगी ? परिणाम जानने के लिए मैंने एक कटोरी में सब्जी ली और ताई जी के घर जा पहुँची | ताई जी ये मैने बनाई है... जरा चख कर तो बताओ कैसी बनी है? 
जैसे ही उन्होंने उसे खाया तो वो एकदम तड़प उठी | (दरअसल हुआ ये था कि एक तो मैंने उसमें हरी मिर्च ढेर सारी डाल दी थी और उसे काटा भी बड़े -बड़े टुकडों में था) मेरा सम्पूर्ण उत्साह न जाने कहाँ खो गया था | जब मैं घर वापस आई तो देखा कि सभी चाव से खाना खा रहे थे | मैं किसी अपराधी की भाँति उनके समक्ष खड़ी थी | मुझमे इतनी हिम्मत नहीं थी कि पूछ सकूं सब्जी कैसी बनी है? 
मुझे मायूस देखकर मेरे पापा ने कहा कि आज तो इतना स्वादिष्ट भोजन बना है | अरे,तुम दूर क्यों खड़ी हो? चलो तुम भी जल्दी से खाना खा लो | आज की परीक्षा में तुमने शत-प्रतिशत अंक प्राप्त किये हैं | उनका इतना कहते ही मेरे चेहरे पर दोबारा प्रसन्नता के भाव आ गए | आज भी जब ये घटना याद आती है तो मेरी आँखें अपने आप ही भर आती हैं |


 


किरण बाला 
 (चण्डीगढ़ )



 


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