जन्‍मदिन-इंदु

रानी की माँ रानी के जन्म दिन को लेकर चिंता में थी, नन्ही बच्ची परसो उसका जन्म दिन है और हाथ पर एक पैसा नहीं!, उदास मन काम में भी नहीं लग रहा था, अचानक पीछे से रानी ने आकर माँ को पकड लिया और माँ को प्यार करते हुए बोली माँ परसो मुझे स्कूल के वार्षिकोत्सव के कार्यक्रम में वराजकुमारी का रोल मिला है l  मुझे राजकुमारी वाला ड्रेस ला दोगी न...! 
माँ हाँ मे सिर तो हिला दिया किन्तु लाएगी कहाँ से...? सारे पैसे तो उसके पिता की बीमारी में लाग गए , उनका काम भी छूट गया lअब वो ठीक भी होने लगे थे किंतु रानी को तो अभी चाहिए, बच्ची को ना बोल कर उसका दिल भी नहीं तोड़ना चाहती। सिलाई मे भी मन नहीं लग रहा था, शाम भी हो गई थी,सिलाई मशीन को बंद कर, उसने देवी माँ के सामने दिया जलाया और घर के कामों मे लग गई खाना बनाने में भी मन नहीं लग रहा था एक ही बात दिमाग में घूम रही थी, कहाँ से इंतज़ाम करूँ ? तीनों  खाना खाने बैठे "  रानी कब है ये कार्यक्रम..? माँ ने पूछा, परसो है माँ. वो बोली और हाथ धोकर सोने चली गई, माँ ने काम समेटा और वो भी सोने के कमरे में आ गई। रानी के पापा एक तरफ़ बेसुध सो रहे थे और एक तरफ़ रानी, वो रानी को ध्यान से देखने लगी कितनी प्यारी और समझदार है मेरी बेटी, कभी कोई जिद नहीं करती, जो कह दूँ वहीं मान लेती है। दूसरे बच्चों की तरह कभी परेशान नहीं किया इसने ना कभी चिल्लाती है, माँ का मन भर आया, हे माँ क्या करूँ..? बिस्तर पर गई किन्तु नींद नहीं आई , उसे याद आया कि उसकी शादी में उसकी माँ ने बहुत प्यारी गुलाबी साड़ी दी थी, उस साड़ी को बड़ी जतन से रखती थीं वो, माँ ने जो दिया था। अचानक बिस्तर से उठी और संदूक के पास चली गई उसमें से उसने धीरे से साड़ी को निकाला आज भी  जरी वैसी. ही चमक रही थी, जैसी जब माँ ने दिया था तब थी. । 
सुबह रानी के स्कूल जाने के बाद वो सिलाई लेकर बैठीं शाम तक सिलती रहीं, दूसरे दिन सुबह  को " मेरी प्यारी रानी बेटी को जन्म दिवस की बहुत-बहुत बधाई, ढेर सारा प्यार और ये तुम्हारा उपहार.." रानी को उसकी माँ ने एक पैकेट थमाया तो रानी ने झट से खोला जिसमें बहुत ही प्यारा राजकुमारी का ड्रेस था " माँ तुम कितनी अच्छी हो तुमको मेरा जन्म दिन भी याद था और राजकुमारी का ड्रेस भी, ओ माँ आज मैं बहुत खुश हूं, उसने कस के माँ को पकड़ लिया, फिर क्या था आज वो सच मे राजकुमारी लग रही थी..।



इंदु उपाध्याय पटना



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