जन्‍मदिन-नीता

सोना का जन्मदिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहा था वह बहुत बेचैन थी कि इस बार मैं अपनी मां से क्या उपहार लूं। हर बार मां मुझे महंगे से महंगा उपहार देती है सभी कुछ तो है मेरे पास इस बार में कुछ अलग मांगूंगी दूसरे ही दिन उसके जन्मदिन पर घर में कई तरह के पकवान बन रहे थे वह बहुत खुश थी मगर मां को ऑफिस के लिए देर हो रही थी अतः वह सोना को समझाती हुई बोली बेटा मुझे आज बहुत जरूरी काम से जाना है मगर मैं जल्दी ही आ जाऊंगी सोना उदास हो गई रसोई घर में जाकर खाना बनाने वाली महाराजन से बोली एंटी आज आपकी बेटी का भी जन्मदिन है तो आपको तो घर जल्दी जाना होगा और सारी तैयारियां करनी होंगी नहीं बेटी हम गरीबों के किस्मत में यह सब कहां रहता है सोना ने कहा नहीं आप अपनी बेटी का जन्मदिन आज जरूर बनाएंगे आज क्या हर बार मनाएंगी। यह सुनकर महाराजिन की आंखों में आंसू आ गए सोना बोली आप आज की छुट्टी लीजिए और घर जाइए और बने हुए पकवान में से कुछ पकवान आप घर ले जाइए और अपने गिफ्ट निकालती हुई बोली यह भी आप अपने बेटी को मेरी ओर से दीजिएगा। सोना का यह समर्पण भाव देखकर मां की आंखों में भी आंसू आ गए अतः उन्होंने ऑफिस में फोन कर कर कहा कि वह आज नहीं आ सकती। और सोना के साथ उन्होंने पूरा दिन बिताया सोना अपना जन्मदिन का यही उपहार मानते हुए बहुत खुश हो गई महाराजिन भी दिए हुए सामानों को लेकर अपने घर गई और अपनी बेटी का भी जन्मदिन मना कर खुश हो गई। कभी-कभी छोटे बच्चे अपनी भावनाओं से बड़ों को गहरे तक आहत कर जाते हैं।
                         


 नीता चतुर्वेदी, विदिशा



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