आज शुभ्र का जन्मदिन था और उसे मालूम था कि आज उसकी हर फरमाइश पूरी की जाएगी ओर यह सच भी था पूरा परिवार ही मानो आज उसकी हर इच्छा पूरी करने के लिए तैयार था। माँ,चाची,चाचा,पापा,दादा ,दादी और सभी बड़े भाई बहन उसकी बलायें ले रहे थे वह बड़ी बेचैनी से शाम का इंतजार कर रहा था कब शाम हो और मैं केक काटा कर सबसे गिफ्ट लूँ जैसे ही शाम हुई वह सजे हुए कमरे को देखकर सबसे पूछने लगा केक कब आएगा तभी माँ कमरे में प्रवेश करते हुए बोली लो राजकुमार का केक भी आ गया यह कहते हुए मां ने केक रखा और सभी को आवाज लगा दी सब लोग जल्दी-जल्दी आ जाओ शुभ्र केक काटने के लिए तैयार है शुभ्र चहक उठा चाकू हवा में लहराते हुए कहने लगा जल्दी आओ जल्दी आओ केक काटूंगा सभी हंसते खिलखिलाते ताली बजाते इकट्ठे हो गए मोमबत्ती जलाई गई उसने अपनी मां को इशारा करके कहा माँ पास आओ मां उस पर बलिहारी जाती उसके पास जाकर खड़ी हो गई तभी चाची, दादी ने आगे बढ़कर कहा शुभ्र तू हमको तो भूल ही गया शुभ्र ने दादी के गले में बाहें डालते हुए कहा लेकिन पहले एक बात बताओ दादी मैंने सबके केक खाए हैं लेकिन आपके दादी और चाची,मम्मी के बर्थडे का केक कभी नहीं खाया! आप केक क्यों नहीं काटते?.. बताओ ना!..एक दम सभी के चेहरों के फ्यूज उड़ गए प्रायश्चित की लकीरों के साथ झुके चहरों के बीच छः आंसू भरी आंखों ने खिलखिला कर कहा आज से हम अपने शुभ्र के साथ अपना जन्मदिन मनाएंगे।
रेखा दुबे विदिशा मध्यप्रदेश।
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